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भाषा के कितने रूप होते हैं?(bhasha ke kitne roop hai)

bhasha ke mukhya kitne roop hai

by Sonal Shukla

मित्रों आज के समय हम सभी जिस प्रकार वार्तालाप करते हैं व अपने भावनाओं तथा विचारों को एक दूसरे के समक्ष प्रकट करते हैं, इसके लिए हम एक माध्यम का इस्तेमाल करते है। इसके माध्यम को हम भाषा कहते हैं।

भाषा के कारण ही आज के समय दो लोग आपस में बात कर सकते हैं, अपने विचार एक दूसरे को कह सकते हैं, लिखकर बता सकते हैं, सांकेतिक रूप में दर्शा सकते हैं। भाषा मानव इतिहास में भाषा का महत्व सबसे ज्यादा है और आज तक इंसान ने अपने आप में जितना बदलाव और उत्थान किया है वह भी भाषा के वजह से ही हुआ है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि भाषा के कितने रूप होते हैं? यदि आप नहीं जानते तो कोई बात नहीं। आज के लेख में हम आपको बताएंगे कि भाषा क्या होती है, भाषा की परिभाषा क्या होती है, भाषा की जरूरत क्या है और भाषा के कितने रूप होते हैं।

तो चलिए शुरू करते हैं और जानते हैं कि भाषा के कितने रूप होते हैं-

भाषा की परिभाषा क्या है?

मित्रों भाषा की परिभाषा अत्यंत ही सरल है। भाषा एक ऐसा माध्यम है जिसकी मदद से कोई भी इंसान बोलकर के लिख कर के सांकेतिक तरीके से अपने विचार तथा अपने भाव को दूसरे व्यक्ति तक पहुंचा सकता है, तथा इसी माध्यम को भाषा कहा जाता है।

आप सोच रहे होंगे की भाषा की यह परिभाषा, आपके द्वारा जानी जाने वाली विभिन्न भाषाओं से अलग क्यों है, तो इसके बारे में हमने आपको निचे विस्तार से बताया है।

आज के समय आप ने विभिन्न भाषाओं के नाम सुने होंगे जैसे कि हिंदी, अंग्रेजी, तमि, तेलेगु, संस्कृत, जर्मन, पोलिश इत्यादि।

यह सभो भाषाएँ, भाषा की परिभाषा और भाषा के प्रकार के स्वरूपों का ही एक प्रोडक्ट है।

भाषा विभिन्न प्रकार के स्वरूपों में पाई जाती है, तथा भाषा की हर स्वरूप की अपने आप में एक विशेषता है, और महत्व है। जिसके कारण भाषा के हर स्वरूप को बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता है।

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भाषा के कितने रूप होते हैं?

भाषा के स्वरूपों का निर्धारण करने के लिए सिर्फ एक आसान सा पैमाना इस्तेमाल किया गया है कि भाषा को किस प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है, और इस्तेमाल किये जाने के पैमाने को लेकर के भाषा को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है।

मित्रों भाषा के 3 स्वरुप होते हैं

1. लिखित भाषा

लिखित भाषा मुख्या रूप से वह भाषा होती है जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने भाव या विचारों को किसी सुव्यवस्थित तथा सुनियोजित तरीके से लिख करके दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाए तथा दूसरे व्यक्ति भी यदि उस लिखित भाषा को समझ सके और सुरक्षित तौर पर दोनों के बीच में संचार व्यवस्था स्थापित हो सके तो संचार व्यवस्था के लिखित माध्यम को लिखित भाषा कहा जाता है।

उदाहरण के लिए लिखाई में इस्तेमाल करी जाने वाली सभी भाषाएँ इसका उदाहरण हो सकती है।

2. मौखिक भाषा

यदि एक व्यक्ति एक निश्चित प्रकार की सुनिश्चित तथा सुनियोजित ध्वनि को बंद करके किसी दूसरे व्यक्ति को शाब्दिक तौर पर, अपने मन के विचार और भाव को समझाने में समर्थ हो सके, तो ऐसी संचार व्यवस्था के ऐसे माध्यम को मौखिक भाषा कहा जाता है।

और इसे अधिक आसन तरीके से परिभाषित किया जाए तो मुह से बोलकर के एक संच्यार व्यवस्था स्थापित करने के तरीके को मौखिक भाषा कही जाती है।

3. सांकेतिक भाषा

सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल पूरे विश्व के द्वारा किया जाता है, और आपने भी कभी ना कभी सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल जरूर किया होगा। सांकेतिक भाषा में किसी भी प्रकार से कोई निश्चित भाषा के अनुसार लिखना यह बोलना नहीं होता है, बल्कि इसमें शरीर के अंगों के द्वारा कुछ ऐसी प्रतिक्रियाएं दी जाती है, जिसके माध्यम से दूसरा व्यक्ति, पहले व्यक्ति के भाव और विचार को समझने में समर्थ हो सके तो ऐसी संचार व्यवस्था के सांकेतिक माध्यम को सांकेतिक भाषा कहा जाता है।

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निष्कर्ष

तो आज के लेख में हमने जाना की भाषा क्या होती है, भाषा की परिभाषा क्या है, भाषा की जरूरत क्या है, भाषा के कितने रूप होते हैं, हम आशा करते हैं कि आप समझ चुके होंगे कि भाषा के कितने रूप होते हैं।

धन्यवाद

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