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karo aur maro ka nara kisne diya

करो या मरो का नारा किसने दिया था? | karo aur maro ka nara kisne diya

Who gave the slogan of do or die? | karo aur maro ka nara kisne lagaya tha

by Sonal Shukla

नमस्कार दोस्तों, करो या मरो के नारे ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए काफी ज्यादा मजबूर कर दिया था, तथा इस नारे का भारत की आजादी के अंतर्गत काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। दोस्तों क्या आप जानते हैं कि करो या मरो का नारा किसने दिया था, (karo ya maro ka nara kisne diya) यदि आपको इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है, तथा आप इसके बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो आज की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको इस विषय के बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।

इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको बताने वाले हैं कि करो या मरो का नारा किसने दिया था, (karo ya maro ka nara kisne diya) हम आपको इस विषय से जुड़ी लगभग हर एक जानकारी इस पोस्ट के अंतर्गत शेयर करने वाले हैं। तो ऐसे में आज का की यह पोस्ट आपके लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाली है, तो इसको अंत जरूर पढ़िए।

करो या मरो का नारा किसने दिया था? (karo ya maro ka nara kisne diya)

दोस्तों कई अलग-अलग प्रकार की परीक्षाओं के अंतर्गत करो या मरो का नारा किसने दिया से संबंधित सवाल पूछे जाते हैं, तथा वहां पर अनेक छात्रों को इस सवाल के बारे में जानकारी नहीं होती है। यदि दोस्तों आपको भी इस विषय के बारे में कोई जानकारी नहीं है, तो आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूं कि करो या मरो का नारा महात्मा गांधी जी के द्वारा दिया गया था, इस नारे के साथ कहा था कि हम आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देंगे। जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि महात्मा गांधी जी का हमारे देश की आजादी के अंतर्गत है काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

8 अगस्त सन 1942 को महात्मा गांधी जी के द्वारा मुंबई के ग्वालियर टैंक मैदान के अंतर्गत अखिल भारतीय कांग्रेस के महा समिति द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी, इसके अंतर्गत हमारे देश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी जी के द्वारा करो या मरो का नारा दिया गया था। इस नारे के अंतर्गत महात्मा गांधी जी ने कहा था कि अब हम इन अंग्रेजों को देश से बाहर निकाल के ही सांस लेने वाले हैं, या तो हम मर जाएंगे या फिर हम इनको बाहर निकाल देंगे।

भारत छोड़ो आंदोलन का

करो या मरो का नारा किसने दिया था? (karo ya maro ka nara kisne diya)

उसके बाद इस आंदोलन ने पूरे भारत के अंतर्गत काफी जोर पकड़ लिया था, तथा इसका काफी अच्छा प्रभाव देखने को मिला था। भारत छोड़ो आंदोलन के फलस्वरूप पूरा देश एक साथ होकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने सड़कों पर आ गया था, और इसको देख अंग्रेजों के हौसले काफी कमजोर हो गए थे, तथा अंत में उनके द्वारा भारत को छोड़ने का फैसला लिया गया था। तो हम कह सकते हैं कि इस भारत छोड़ो आंदोलन तथा करो या मरो के नारे ने अंग्रेजों को इस देश को छोड़ने तक मजबूत कर दिया था।

आज आपने क्या सीखा

तो आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमने आपको बताया कि करो या मरो का नारा किसने दिया था, (karo ya maro ka nara kisne diya) हमने आपको इस पोस्ट के अंतर्गत के विषय से जुड़ी लगभग हर एक जानकारी को देने का प्रयास किया है। इसके अलावा हमने आपके साथ इस पोस्ट के अंतर्गत करो या मरो के नारे से जुड़ी कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां भी शेयर की है, जैसे कि करो या मरो का नारा किसके द्वारा दिया गया था, यह नारा किस आंदोलन के अंतर्गत दिया गया था, तथा उस आंदोलन की शुरुआत कब हुई थी, तथा उसका भारत की आजादी में क्या प्रभाव रहा था।

आज की इस पोस्ट के माध्यम से हमने आपको इस विषय से जुड़ी लगभग हर एक जानकारी को देने का प्रयास किया है। हमें उम्मीद है कि आपको हमारे द्वारा दी गई यह इंफॉर्मेशन पसंद आई है, तथा आपको इस पोस्ट के माध्यम से कुछ नया जानने को मिला है। इस पोस्ट को सोशल मीडिया के माध्यम से आगे शेयर जरूर करें, तथा इस विषय के बारे में अपनी राय हमें नीचे कमेंट में जरूर बताएं।

FAQ

भारत छोड़ो का नारा किसने दिया

किस स्वतंत्रता सेनानी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा गढ़ा था? किस स्वतंत्रता सेनानी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा गढ़ा था? प्रतिष्ठित ‘भारत छोड़ो’ का नारा समाजवादी कांग्रेस नेता और बॉम्बे के तत्कालीन महापौर, यूसुफ मेहरली द्वारा गढ़ा गया था, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने 1942 में एक बैठक के दौरान महात्मा गांधी को वाक्यांश का प्रस्ताव दिया था।

आराम हराम है किसका नारा है?

आराम हराम है का नारा जवाहरलाल नेहरू ने दिया था।

वंदे मातरम का नारा किसने कहा था?

वंदे मातरम 1870 के दशक में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा बंगाली में लिखी गई एक कविता है, जिसे उन्होंने अपने 1882 के बंगाली उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया था। कविता को पहली बार रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1896 के सत्र में गाया था।

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