लखनऊ के चौक स्थित बड़ी काली जी मन्दिर बेहद प्राचीन मन्दिर है। यहां लक्ष्मी और नारायण के स्वरूप में बड़ी काली जी की पूजा होती है। मन्दिर की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने लगभग 2400 वर्ष पूर्व की थी। इस मन्दिर मठ का संचालन बौद्ध गया मठ से होता है। मान्यता है कि जो भी भक्त 40 दिन आकर माता के दर्शन करता है उसका हर मनोकामना पूर्ण होती है।
साल में चार बार होते हैं अष्टधातु मूर्ति के दर्शन: मंदिर के पुजारी शक्ति दीन अवस्थी ने बताया कि मंदिर में अत्यंत प्राचीन अष्टधातु की लक्ष्मी नारायण की मूर्ति है। जिसे नवरात्रि में अष्टमी और नवमी के दिन भक्तों के दर्शन के लिए निकाला जाता है। इस तरह भक्त वर्ष में चार बार ही इस मूर्ति के दर्शन कर पाते है। इसके बाद यह मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में रख दी जाती है। कुछ साल पहले तक राज्यपाल या उनकी कोई उपस्थिति ही इस मूर्ति को मंदिर के गर्भगृह से बाहर निकालते थे। मान्यता है कि अष्टधातु मूर्ति के सामने जो भी मन्नत पूछा जाता है वह पूरी होती है। यही कारण है कि नवरात्र की अष्टमी और नवमी को बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं।
माता के स्नान किए गए जल से रोगों से मिलती है मुक्ति: मान्यता है कि बड़ी काली जी को स्नान कराए गए जल के प्रयोग मात्र से कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है। यह जल मंदिर परिसर में बने कुंड में एकत्र होता है। यहां आने वाले साथ भक्त माता के दर्शन करने के बाद कुंड के जल का सेवन करते हैं और आंखों पर लगाते हैं। इस जल को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने से शरीर निरोगी बनता है।
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