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आरोग्यता प्रदान करती हैं माता शीतला 

by Sneha Shukla

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शीतला अष्टमी पर सभी कष्टों को दूर करने वाली और आरोग्यता प्रदान करने वाली माता शीतला के दिव्य स्वरूप की आराधना की जाती है। इसे बसौड़ा पूजा नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, माता शीतला की पूजा हर साल चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को की जाती है। इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला को बासी खाने का भोग लगाया जाता है और बाद में इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

शीतला अष्टमी को ऋतु परिवर्तन का संकेत भी माना जाता है। इस दिन के बाद से राशि ऋतु आरंभ हो जाती है। होली के बाद शीतला सप्तमी या अष्टमी का त्योहार आता है। इस दिन बासी खाना पकाने जाता है और शीतला माता को अर्पित किया जाता है। इसीलिए इसे बसौड़ा भी कहते हैं। जिस जगह होली की पूजा होती है, वहीं बसौड़े की पूजा की जाती है। जो लोग अष्टमी की पूजा करते हैं वे लोग सप्तमी की रात खाना बनातेकर अष्टमी को बासी खाने को प्रसाद के रूप में शीतला माता को अर्पित करते हैं। नाम के अनुसार ही शीतला माता को शीतल चीजें पसंद हैं। शीतला सप्तमी और अष्टमी को ठंडी चीजों का ही भोग लगाया जाता है। शीतला माता की पूजा से अरोग्यता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। माता के आशीर्वाद से चेचक, खसरा व नेत्र विकार दूर हो जाते हैं। माता की पूजा में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी के दिन बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें। आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, होली वाली बड़कुले की माला, चिन्ह और मेहंदी रखें। साथ में ठंडे पानी का लोटा भी रखें। माता को सभी चीजें अर्पित करने के बाद घर के सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगता है। माता को मेहंदी, मोली और वस्त्र अर्पित करें। माता को जल अर्पित करें और थोड़ा जल बचाकर उसे घर के सभी सदस्यों को आँखों पर लगाएं। बाकी बचा हुआ जल घर के हर हिस्से में छिड़क दें।

इस ग्राफ़ में दी गई धार्मिक धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिन्हें केवल सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।



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