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केंद्र ने SC को बताया, ’18-44 साल के लोगों के लिए राज्यों का वैक्सीन खरीदना सही, 45 से अधिक के लोगों के लिए हम करते रहेंगे आपूर्ति’

by Sneha Shukla

कोरोना के इलाज के बेहतर प्रबंधन पर सुप्रीम कोर्ट में आज होने वाली सुनवाई से पहले केंद्र ने अपनी वैक्सिनेशन नीति का बचाव किया है। कोर्ट ने पूछा था कि केंद्र वैक्सीन की 100 प्रतिशत खरीद खुद क्यों नहीं कर रही है? इसके जवाब में केंद्र ने कहा है कि उसने 50 प्रतिशत वैक्सीन की खरीद खुद करने की नीति बहुत सोच-विचार कर बनाई है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा है –

1 – 45 से अधिक उम्र के लोगों पर खतरा अधिक है। उन्हें प्राथमिकता देते हुए उनके लिए राज्यों को मुफ्त वैक्सीन दी जा रही है। इसके लिए कुल वैक्सीन उत्पादन का 50 प्रतिशत केंद्र खरीद रहा है।

2 – & nbsp; 18-44 साल की उम्र के लोगों के लिए राज्य और निजी क्षेत्र वैक्सीन खरीद रहे हैं। केंद्र ने वैक्सीन कंपनियों से बात कर कीमत कम करवाई।

3 – केंद्र ने वैक्सीन कंपनियों को वैक्सीन बनाने में कोई आर्थिक मदद नहीं दी है। सीरम इंस्टीट्यूट को दिए गए 1732.50 करोड़ रुपए और भारत बायोटेक को दिए गए 787.50 करोड़ रुपए वैक्सीन खरीद के एडवांस के तौर पर दिए गए थे। केंद्र को राज्यों से कम कीमत मिलनी की वजह यही है कि उसने ज्यादा खरीद की है।

4 – सभी राज्यों ने अपने नागरिकों को मुक्त वैक्सीन देने की नीति तय की है। इसलिए, केंद्र की तरफ से सारा वैक्सीन खरीद कर राज्यों को न देने से नागरिकों का कोई नुकसान नहीं।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की टीकाकरण नीति पर सवाल उठाए थे। इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने भी हलफनामा दायर कर मांग की थी कि राज्यों को केंद्र से पूरा वैक्सीन मुफ्त में मिलना चाहिए। केंद्र के जवाब से साफ है कि उसका वैक्सीन की शत-प्रतिशत खरीद खुद करने मे अंतर नहीं है।

केंद्र ने यह भी बताया है कि कोवैक्सिन, कोविशील्ड और स्पुतोनिक का उत्पादन और आपूर्ति बढाने के लिए लगातार प्रयास किया जाता है। जा रहे हैं। इस बार सीरम डिप्लोमा ने कोविशील्ड का उत्पादन बढ़ा कर 5 करोड़ डोज़ हर महीने कर दिया है। जुलाई तक इसे और बढ़ा कर 6.5 करोड़ हो जाएगा। भारत बायोटेक ने भी उत्पादन बढ़ाया है। कोविक्सिन इस समय 2 करोड़ डोज़ हर महीने बन रहा है। यह जुलाई में 5.5 करोड़ हो सकता है। रूसी वैक्सीन स्पुतनिक भी जुलाई तक 1.2 करोड़ डोज़ प्रतिमाह हो जाएगा।

सरकार ने यह भी बताया है कि उसकी कोशिशों से रेमेडेसिवर की कीमत में 25 से 50 प्रतिशत तक कमी आई है। फेविपिरावीर, आइवरमेस्टिन जैसी दवाओं की कीमत पर 2013 में बने नीति के तहत नियंत्रण रखा जा रहा है। लेकिन दुनिया भर में दवाओं के लिए कच्चे माल की कमी है। उनकी कीमत भी बढ़ी है। इसलिए दवा कंपनियों को बहुत अधिक कटौती का आदेश नहीं दिया जा सकता है। इसका उत्पादन पर बुरा असर पड़ सकता है।

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