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कोरोना काल में रोज़े छोड़कर लोगों की मदद में जुटा है प्रयागराज का ये 'मसीहा', पढ़ें पूरी खबर 

कोरोना काल में रोज़े छोड़कर लोगों की मदद में जुटा है प्रयागराज का ये ‘मसीहा’, पढ़ें पूरी खबर 

by Sneha Shukla

प्रयागराज: कोरोना महामारी के मुश्किल दौर में जहां लोग अपनों से मुंह मोड़ ले रहे हैं, वहीं संगम नगरी प्रयागराज में एक शख्स ऐसा है, जो परेशान और जरूरतमंद लोगों की मदद कर उनके लिए मसीहा साबित हो रहा है। लोगों को मदद पहुंचाने के लिए ये शख्स रमज़ान के पाक महीने में रोज़े भी नहीं रख रहे हैं।

सिस्टम को दिखा रहा है आइना
फैज़ुल नाम का ये शख्स कोरोना के मुश्किल वक़्त में गरीबों और दूसरे ज़रूरतमंदों को ना सिर्फ मुफ्त में शव वाहन मुहैया करा रहा है, बल्कि अनाथ लोगों की अर्थी को कांधा देकर उनका अंतिम संस्कार भी करा रहा है। फैज़ुल खुद गरीब परिवार से हैं, लेकिन इसके बावजूद वे मुक्त में लोगों को शव वाहन मुहैया कराकर तमाम सक्षम लोगों और सिस्टम को आइना दिखाने का काम कर रहे हैं।

किसी से कोई पैसा नहीं मांगते
प्रयागराज के अतरसुइया इलाके के रहने वाले फैजुल वैसे तो गरीबों के शवों को मुक्त में वाहन मुहैया कराने का काम पिछले दस सालों से कर रहे हैं, लेकिन कोरोना के मुश्किल वक्ताल में इन दिनों उनका पूरा समय रामों की मदद में ही बीत रहा है। जहां से भी फोन आता है, वह अपना वाहन लेकर दौड़ पड़ते हैं। कभी किसी से कोई पैसा नहीं मांगते। अगर किसी ने अपनी मर्ज़ी से कुछ दे दिया तो उसके ड्राइवर की तनख्वाह और वाहन के मेंटेनेंस का खर्च किसी तरह चला जाता है।

अंतिम संस्कार की रस्में भी अदा करते हैं
कोरोना की महामारी के दौरान जहां लोगों को एम्बुलेंस और शव वाहन या तो मिलते हैं या फिर उनके लिए मुंह से कीमत वसूली की जा रही है। ऐसे में फैजुल जरूरतमंदों के लिए मसीहा बनकर सामने खड़े होते हैं। कोरोना काल में जब तमाम अपने भी मदद के लिए सामने आने में हिचकते हैं, उस मुश्किल समय में फैजुल ना सिर्फ शवों को अस्पताल से घर या घर से शमशान और कब्रिस्तान पहुंच रहे हैं, लेकिन जिनके परिवार में ज्यादा लोग नहीं होते, खुद उनकी अर्थी को कांधा भी देकर अंतिम संस्कार की रस्में भी अदा करते हैं।

रोज़े नहीं रख रहे हैं
फैज़ुल वैसे तो धर्म के मामले में बेहद कट्टर और पांच वक़्त के नमाजी हैं, लेकिन इस बार रमज़ान के महीने में भी वो रोज़े नहीं रख रहे हैं। उनका कहना है कि रोज़ा रखने की वजह से उनके काम में किसी तरह की रुकावट ना हो, इसलिए इस बार अल्लाह से माफी मांगते हुए रोज़े नहीं रख रहे हैं।

शादी भी नहीं i
फैज़ुल ने शस को मुक्त में ढोने के काम को ही अपनी ज़िंदगी का मकसद बना रखा है। अपने इसी मकसद को पूरा करते हुए के लिए ही उन्होंने शादी भी नहीं की है। उनका कहना है कि दुनियादारी में पड़ने की वजह से उनके काम में रुकावट ना पैदा हो, इसलिए वे शादी नहीं करना चाहते। पहले वे शवों को ट्रॉली पर रखकर एक से दूसरी जगह पहुंचते थे, लेकिन बाद में कुछ पैसे इकट्ठे कर और साथ ही कुछ संसाधनों से मदद लेकर उन्होंने एक वाहन खरीद लिया है।

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