विशेष कोविड -19 वैक्सीन का असर और सुरक्षा को लेकर अटकलों का बाजार गर्म रहा है, खासकर स्वास्थ्य की स्थिति से जूझ रहे लोगों के लिए। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि विशेष प्रकार की एलर्जी वाले लोगों को वैक्सीन लगवाने से परहेज करना चाहिए, दूसरे इस तरह के कैंसर रोगियों को ज्यादा जोखिम में शामिल करना है। इस बीच, दुनिया को विभाजित -19 के मामलों में अप्रत्याशित उछाल देख रही है, ऐसे में जानना जरूरी हो जाता है कि इलाज करा रहे कैंसर रोगियों के लिए कोविड -19 की वैक्सीन कितनी प्रभावी हैं।
दो डोजे एमआरएन वैक्सीन कम प्रभावी
खोज की दिशा में कदम बढ़ाते हुए शोधकर्ताओं ने पाया है कि विशेष वैक्सीन कैंसर का इलाज करने वाले लोगों में कम प्रभावी हो सकते हैं। पत्रिका ब्लड में प्रकाशित दो शोध के मुताबिक, एमआरएन आधारित को विभाजित वैक्सीन का दोनों डोज ब्लड कैंसर का इलाज करने वाले लोगों में कम प्रभावी हो सकता है। नतीजों के आधार पर उन्होंने बताया कि एमआरएन कोविड -19 वैक्सीन क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया और मल्टीपल माइलोमा वाले रोगियों में स्वस्थ लोगों के मुकाबले असर नहीं दिखा सकता है।
क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया सबसे आम प्रकार का ल्यूकेमिया है जो व्यानों को प्रभावित करता है। ये बोन मैरो और ब्लड के कैंसर का प्रकार है। दूसरी तरफ मल्टीपल माइलोमा प्लोस कोशिकाओं का कैंसर है जो सफेद कोशिका का एक प्रकार है जो एंटी बॉडीज पैदा करता है। हालांकि, शोधकर्ताओं ने स्पष्ट किया है कि कोरोनावायरस के खिलाफ टीकाकरण इन रोगियों के बीच अभी भी बहुत महत्वपूर्ण है।
कैंसर के मरीज़ों में रिस्पॉंस दर कम दिखाया गया है
इजराइल में तेल अवीव के एक शोधकर्ता कहते हैं, “भले ही रिपस्पॉन्स चरम न हो, लेकिन क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया वाले मरीजों को अभी भी वैक्सीन लगवाना चाहिए, अगर संभव हो तो बेहतर होगा कि पहले इलाज शुरू करने से पहले किया जाए, हालांकि बीमारी खुद ब खुद रिस्पॉन्स को प्रभावित कर सकता है। ” शोधकर्ताओं ने क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया वाले 167 रोगियों और 53 स्वस्थ रोगियों को जांचा।
दोनों ग्रुप को फाइजर की कोविड -19 वैक्सीन का दोनों डोज दिया गया। विश्लेषण के बाद उन्होंने पाया कि जो लोग कैंसर का इलाज करवा रहे थे, उन्होंने वैक्सीन से इम्यून रिस्पॉन्स 16 फीसद पाया। क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया वाले मरीजों के नतीजे का आधार उनके कैंसर के इलाज की प्रक्रिया पर निर्भर रहा। क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया वाले जिन लोगों की चिंता करने की जा रही थी लेकिन इलाज नहीं मिल रहा था, उन्होंने 55.5 फीसद रिस्पॉन्स की दर दिखाई।
इसके विपरीत जिन लोगों ने टीकाकरण से एक साल पहले अपना इलाज पूरा कर लिया, उनके अंदर इम्यून रिस्पॉन्स पास का 94 फीसद पता चला। शोधकर्ताओं ने बताया कि वैक्सीन से रिस्पॉन्स दर स्पष्ट रूप से आम आबादी के मुकाबले कम दिखाई दिया, जो कैंसर की सबसे अधिक संभावना के लिए जिम्मेदार और निश्चित रूप से क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया है। उन्होंने ये भी कहा कि क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिनेट मरीजों का एंटी बॉडी भी कम था, जिसका मतलब है कि रिस्पॉन्स की तीव्रता कम थी।
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