चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल, मंगलवार से शुरू हो गए हैं। नवरात्रि का पहला दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप को समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
मां शैलपुत्री का कैसा स्वरूप है-
मां शैलपुत्री के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल है। यह देवी वृषभ पर विराजमान हैं, जो पूरे हिमालय पर राज करती है। मान्यता है कि नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
मां शैलपुत्री का प्रसाद-
मां शैलपुत्री के चरणों में गाय का घी अर्पित करने से भक्तों को आरोग्यता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मां शैलपुत्री की पूजा के शुभ मुहूर्त-
अमृतसिद्धि योग – 13 अप्रैल की सुबह 06 बजकर 11 मिनट से दोपहर 02 बजकर 19 मिनट तक।
सर्वार्थसिद्धि योग – 13 अप्रैल की सुबह 06 बजकर 11 मिनट से 13 अप्रैल की दोपहर 02 बजकर 19 मिनट तक।
अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12 बजकर 02 मिनट से दोपहर 12 बजकर 52 मिनट तक।
अमृत काल – सुबह 06 बजकर 15 मिनट से 08 बजकर 03 मिनट तक।
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04 बजकर 35 मिनट से सुबह 05 बजकर 23 मिनट तक।
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माँ शैलपुत्री मंत्र-
वन्दे वाक् अश्वलाभय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधारं शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ां
पढ़ें मां शैलपुत्री से जुड़ी पौराणिक कथा-
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इनका वाहन वृषभ (बैल) है। शैल शब्द का अर्थ होता है पर्वत। शैलपुत्री को हिमालय पर्वत की बेटी ने कहा है। इसके पीछे की कथा यह है कि एक बार प्रजापतिव्रत (सती के पिता) ने यज्ञ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया। दक्ष ने भगवान शिव और सती को निमंत्रण नहीं भेजा। ऐसे में सती ने यज्ञ में जाने की बात कही तो भगवान शिव उन्हें निर्दिष्ट करते हैं कि बिना निमंत्रण जाने ठीक नहीं लेकिन जब वे नहीं मानीं तो शिव ने उन्हें अनुमति दे दी।
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जब सती पिता के यहां पहुंची तो उन्हें बिन बुलाए मेहमान वाला व्यवहार ही झेलना पड़ा। उनके माता-पिता के अतिरिक्त किसी ने उन्हें प्यार से बात नहीं की। उनकी बहनें उनका उपहास उड़ाती रहीं। इस तरह का कठोर व्यवहार और अपने पति का अपमान सुनकर वे क्रुद्ध हो गयीं। क्षोभ, ग्लानि और गुस्सा में उन्होंने खुद को यज्ञ अग्नि में भस्म कर लिया। यह सुनने वाले भगवान शिव ने अपने गुणों को भेजकर अमृत का यज्ञ पूरी तरह से विध्वंस करते हुए दिया। अगले जन्म में सती ने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए उन्हें शैलपुत्री ने कहा है।
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