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जेल में ही बीत गए शहाबुद्दीन के जीवन के 18 साल, 2004 में आखिरी बार जीता था एमपी का चुनाव

by Sneha Shukla

पूर्व सांसद मो। शहाबुद्दीन की कोरोना से मौत के बाद जिले में चारों तरफ तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। सुबह से मौत की मीडिया में चल रही खबरों के बीच हर कोई पुष्टि नहीं चाहता था। दोपहर बाद निधन की पुष्टि हुई।

शहाबुद्दीन 1990 में पहली बार जीरादेई से निर्दलीय विधायक चुने गए। उसके बाद 1995 में जनता दल के टिकट पर दोबारा विधायक बने। फिर 1996, 1998, 1999 और 2004 में राजद के टिकट पर सीवान से सांसद चुने गए। हालांकि उनके राजनीतिक जीवन में उतार-चढ़ाव लगा रहा। इस बीच 13 अगस्त 2003 को पूर्व सांसद ने छोटापुर निवासी मुन्ना चौधरी मामले में कोर्ट में सरेंडर किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया।

जेल में रहने के दौरान ही उन्होंने 2004 में सांसद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। फास्ट ट्रैक -1 के आदेश पर शपथ लेने के लिए दिल्ली गए। इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश पर 15 दिन के अंदर उन्हें जेल जाना पड़ा। इस बीच तत्कालीन डीएम सीके अनिल ने उन्हें बेऊर जेल स्थानांतरित कर दिया। फिर कोर्ट के आदेश पर 22 फरवरी 2005 को शहाबुद्दीन जेल से बाहर आया। लेकिन तत्कालीन डीएम सीके अनिल ने सीसीए के तहत उन्हें जिला बदर कर दिया। जिसके बाद का समय दिल्ली व पटना में ही गुजरा।

डीएम सीके अनिल और एसपी रत्न संजय ने शहाबुद्दीन के प्रतापपुर स्थित आवास पर छापेमारी की। इस दौरान उन अलग-अलग मामलों में नौ-दस मुकदमे दर्ज किए गए। जिसके बाद हुसैनगंज की तत्कालीन थानाध्यक्ष गौरी कुमारी उन्हें रिमांड पर दिल्ली से लेकर आयीं। जहां से उन्हें भागलपुर जेल भेज दिया गया। जून 2006 में जेल के अंदर बने विशेष न्यायालय में सुनवायी के लिए उन्हें सीवान लाया गया। जहां चिरचित तेजाब कांड में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी। उसके बाद अन्य ममामले में भी सुनवायी चलती रही।

इस दौरान तत्कालीन डीएम महेंद्र कुमार ने उन्हें भागलपुर जेल स्थानांतरित कर दिया। जहाँ जमानत मिलने के बाद 2018 में लगभग तीन सप्ताह के लिए जेल से बाहर आए। लेकिन फिर उन्हें कानून व्यवस्था की दुहाई देकर सीवान से तिहाड़ भेज दिया गया। तिहाड़ में समय रहते ही कोरोना संक्रमण की शिकायत के बाद दिल्ली के पं। दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां उन्होंने शनिवार को आखिरी सांस ली। इस तरह राजद के बाहुबली सांसद मो। शहाबुद्दीन के राजनीतिक जीवन का 13 साल बाहर व 18 साल जेल में ही गुजर गया।

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