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दुनिया के हर बाजार से भारतीय जिंदगी बचाने का सामान जुटाने की कोशिश

by Sneha Shukla

<पी शैली ="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> नई दिल्ली: को विभाजित संकट की दूसरी लहर में भारतीय जानों को बचाने के लिए एक लड़ाई अस्पतालों में चल रही है। भारत के विदेश मंत्रालय और राजनयिक मिशनों में भी रात-दिन कवायद जारी कर रहे हैं। हर संभव साधन और स्रोत से ऑक्सीजन और आवश्यक दवाओं की किल्लत पाटने का प्रयास चल रहा है। आलम यह है कि इस वक्त भारत ऑक्सीजन उपकरणों और रेमडेसिर्व जैसी दवा का दुनिया में सबसे बड़ा खरीददार बन चुका है। & nbsp;

इन कयोनों से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक अप्रैल के मध्य में को लाभांश संकट के गहराने के साथ ही जरूरी सामान जुटाने की कवायद शुरु हो गई थी। सभी राजदूतों को बधाई संदेश दिया गया था कि आवश्यक उपकरणों और दवाओं के हर स्रोत को नियंत्रित किया जाए। यह भारत के लिए सुखद आश्चर्य भी था कि भारत इन जरूरत की चीजों को खरीदना चाहता था। लेकिन यह सुखद आश्चर्य है कि ज्यादातर देशों ने जरूरी सामान को मदद के तौर पर मुहैया कराया। सभी ने इस बात को भी स्पष्ट किया कि भारत ने संकट के समय उन्हें मदद दी थी। लिहाजा अब सहायता करने की उनकी बारी है।

भारत के लिए सहायता का हाथ बढ़ाने वाले देशों की संख्या 42 है। इसमें से 21 देश अपनी मदद की कम से कम एक खेप अब तक भेज चुके हैं। विदेशी मदद प्रदान करने के आंकड़े देखें तो अब तक 20 हजार ऑक्सीजन सिलेंडर, 11 हजार ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर, 30 ऑक्सीजन टैंकर (इसमें से 9 आ चुके हैं) और 75 ऑक्सीजन मित्र मित्र देश पहुंच के प्रोमो कर चुके हैं। & nbsp;

सांसों को बचाने की जंग में ऑक्सीजन की आपूर्ति की लड़ाई
लगभग तीन सप्ताह के दौरान काफी फोकस के साथ प्रयास किए गए। इसमें तमाम कोशिश ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर, बड़े ऑक्सीजन और तरल ऑक्सीजन के लिए क्रेयोजेनिक कंटेनर जुटाए गए। भारत में मेडिकल ऑक्सीजन की खपत आमतौर पर लगभग एक हजार टन थी। लेकिन कोविड 19 के बढ़ते मामलों में यह मांग सात गुना से अधिक बढ़ गई है। & nbsp; उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक भारत में ऑक्सीजन उत्पादन का आंकड़ा 5700 मिलियन टन से बढ़कर 9480 मिलियन टन हो गया है। इस वृद्धि के बावजूद अस्पतालों की ऑक्सीजन की आवश्यकता बरकरार है। कई राज्यों में 683 मिलियन टन ऑक्सीजन की अतिरिक्त मात्रा बढ़ाकर उनका भी इस्तेमाल किया जा रहा है। & nbsp;

ऐसे में विदेशों में मौजूद भारत के मिशन इस कवायद में जुटे हैं कि आने वाले कुछ समय में लगभग 50 हजार टन टन क्षमता के ऑक्सीजन प्लांट भारत में स्थापित किए जा सकें। इसके अलावा पीएम केयर्स फंड प्रेशर स्विंग एडसॉर्प्शन तकनीक का इस्तेमाल कर 1594 ऑक्सीजन प्लांट अस्पतालों में लगाए जा रहे हैं। भारत के ऑक्सीजन उत्पाद पूर्वी क्षेत्र से अधिक खपत वाले उत्तरी, दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों से इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करने पर जोर है। अब तक विदेशों से हासिल 9 टैंकरों को काम पर लगाया जा चुका है। & nbsp;

सूत्र बताते हैं कि विदेशों से मिल रही मदद के बीच खरीद की कवायदें भी जारी हैं। भारत में लगभग 102,400 ऑक्सीजन सिलेंडर की खरीद हो रही है। साथ ही 127,000 ऑक्सीजन सिलेंडर निर्माण के लिए दी गई हैं। कई देशों से जहां अभी तक बड़ी संख्या में ऑक्सीजन कंस्ट्रक्टर सहायता के तौर पर भेजे गए हैं, वहीं भारत एक लाख ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर खरीद भी रहा है।

इन कयोनों से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, जिस तरह से पहली कोविंद लहर ने भारत को पीएसई और फेस जैसे बुनियादी मेडिकल सामानों को आत्मनिर्भर बनाया है। उसी तरह, तेज चाल चलने के प्रयासों के सहारे आने वाले कुछ समय में न केवल भारत के अस्पतालों की ऑक्सीजन किल्लत दूरकर भारत ऑक्सीजन उत्पादन के संकट से जल्द ही बाहर निकल जाएगी। बल्कि बढ़ी हुई उत्पादन लागत कोरोना लहर बीतने के बाद ऑक्सीजन एक्स की संभावनाओं में भी बदल सकती हैं। & nbsp;

="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> सूत्रों के मुताबिक भारत ने ताजा ऑक्सीजन संकट को दूर करने के लिए सहायता और खरीद के सहारे 90 ऑक्सीजन टैंकर जुटाए हैं। वहीं 4 हजार ऑक्सीजन सिलेंडर और 13 ऑक्सीजन प्लांट भी दूसरे मुल्कों से हासिल किए गए हैं। इतना ही नहीं बहरीन, कुवैत, कतर और सउदी अरब से लिक्विड ऑक्सीजन भी भारत आई है। संयुक्त अरब अमीरात ने भारत की मदद के लिए 7 ऑक्सीजन टैंकर दिए हैं। भारतीय नौसेना के समुद्र सेतु मिशन में लगे युद्धपोत अगले कुछ दिनों में खाड़ी देशों से 1400 मिलियन टन तरल ऑक्सीजन पहुंचेंगे। इसमें बहरीन से 150 टन टन के साथ पहली खेप भारत पहुंच भी चुकी है।

दवा की कमी का दर्द दूर करने की कवायद
भारत इस समय रेमडेसिवर दवा का दुनिया में सबसे बड़ा खरीददार है। गंभीर स्थिति में कोरोना रोगियों को बचाने के लिए इस्तेमाल हो रही इस दवा का जहां भी बड़ा स्टॉक मौजूद है वहां भारत की खरीदारी रिक्वेस्ट पहुंच चुकी है। & nbsp;

रेमडेसिव & nbsp; की किल्लत दूर करने के लिए भारत इस दवा का पेटेंट रखने वाली गिलियाड लाइफ साइंसेंस के साथ संपर्क में है। कोशिश इस बात को लेकर चल रही है कि भारत में दवा के लाइसेंस उत्पादन की सीमा 67 हजार वाइल को बढ़ाया जा सकता है। भारत की कोशिश प्रतिमाह एक करोड़ डोज उत्पादन की है। इसके अलावा विभिन्न देशों में कंपनी के उत्पादकों के साथ भी भारत ने संपर्क किया है। इस कड़ी में मिस्र की एक दवा कंपनी से 4 लाख डोज खरीदे जा रहे हैं। वहीं बांग्लादेश, जर्मनी, अपबेकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात की कंपनियों से भी रेमदेसीर & nbsp; हासिल करने की जा रही है। & nbsp;

घरेलू स्तर पर रेमडेसिव & nbsp; दवा को बनाने में इस्तेमाल होने वाले बीटाडॉक्स का उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत ने बुश और ऑस्ट्रिया से संपर्क किया है। भारत की कोशिश रामदेसीवीर का मासिक उत्पादन एक करोड़ डोज प्रतिमाह तक बनाने की तैयारी है। कोरोना मरीजों की जान बचाने में काम आ रही टोसलाईजुमा दवा की बड़ी खेप बढ़ाने के भी तेज प्रयास आज भी चल रहे हैं। इस कड़ी में स्विस कंपनी रोशे के साथ भारत संपर्क में हैं। कंपनी ने भारत के अनुरोध पर 11 हजार वायल दिए हैं और 21 हजार वायल और देने का भरोसा दिया है। & nbsp;

इतना ही नहीं मोनोक्लोलन चैनलज को भी जल्द ही भारतीय दवा नियंत्रक की मंजूरी मिल जाने की उम्मीद है। भारत ने जर्मनी से इसके लगभग 30 हजार डोज हासिल करने की तैयारी कर ली है। इसके अलावा कुछ दवाओं के कॉकटेल को भी अनुमति मिल जाने की उम्मीद है। सूत्रों के मुताबिक इसमें दवाओं की किल्लत से राहत मिलेगी। & nbsp;

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