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सभी एकादशी पुण्यदायी हैं। एकादशी उपवास का विशेष महत्व माना जाता है। चैत्र माह में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को पापांक्षय या पापमोचनी एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी सभी पापों से मुक्त करने वाली है। इस एकादशी का व्रत मोक्ष प्रदान करने वाला है। मान्यता है कि पापांक्षय एकादशी का व्रत करने से मातृपक्ष और पितृपक्ष के 10-10 पितरों को विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की उपासना करें। जाने-अनजाने जो भी पाप हुए हैं उससे मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करें।
एकादशी व्रत का पालन दशमी तिथि से करना चाहिए। दशमी तिथि पर गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए। संभव हो तो दशमी और एकादशी दोनों ही दिनों में मौन व्रत का पालन करना चाहिए। इस व्रत को लेकर कथा के अनुसार एक बार मेधावी ऋषि कठोर तप में लीन थे। देवराज इंद्र ने उनकी तपस्या भंग करने को मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। ऋषि, अप्सरा पर मुग्ध हो गए और भक्ति छोड़कर अप्सरा के साथ रहने लगे। कई साल बाद मंजुघोषा ने ऋषि से स्वर्ग वापस जाने की आज्ञा मांगी। ऋषि को भक्ति मार्ग से हटने का बोध हुआ तो उन्होंने अप्सरा को श्राप दे दिया। अप्सरा श्राप से मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी। इसी समय देवर्षि नारद आए और अप्सरा और ऋषि दोनों को पाप से मुक्ति के लिए पापांक्षय एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। विधि-विधान से दोनों ने व्रत किया और वह पाप मुक्त हो गई। इस व्रत के प्रभाव से सुख-शांति प्राप्त होती है और पाप क्षय के विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। पूरे व्रतकाल में ध्यान-जप-संकीर्तन में समय व्यतीत करना चाहिए।
इस ग्राफ़ में दी गई धार्मिक धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिन्हें केवल सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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