हर मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत किया जाता है। भगवान काल भैरव को समर्पित यह व्रत बहुत फलदायी है। भगवान शिव के अंश से भगवान कालभैरव की उत्पत्ति हुई, इसलिए कालाष्टमी को काल भैरवाष्टमी या भैरवाष्टमी नाम से भी जाना जाता है। कालाष्टमी व्रत रखने से रोगों से मुक्ति मिलती है। भगवान भैरव की उपासना से हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
भगवान भैरव के हाथ में त्रिशूल, तलवार और डंडा होने के कारण उन्हें दंडपाणि भी कहा जाता है। कालाष्टमी के दिन भगवान कालभैरव और माता दुर्गा की उपासना करें। इस रात मां काली की उपासना करने वाले भक्तों को चतुररात्रि के बाद मां की उपासना उसी प्रकार से करनी चाहिए, जिस प्रकार नवरात्र में सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस व्रत में भैरव कथा का पाठ करें। भगवान भैरव को गुलाल, चावल, सिंदूर, फूलमाला और फूल अर्पित करें। मंदिर में कागल और कर्पूर का दान करें। घर में गंगाजल का छिड़काव करें। भैरव चालीसा का पाठ करें। भगवान भैरव को फल, मिठाई, गुड़ से बनी चीजों का भोग पाते हैं। कालाष्टमी पर सरसों के तेल का दीया जलाते हैं। इस व्रत में रात में मां पार्वती और भगवान शिव की कथा सुनकर रात्रि जागरण करें। भगवान भैरव की उपासना से भूत, पिशाच और हर तरह की बाधाएं दूर हो जाती हैं।
यह धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित है, जिन्हें केवल सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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