नवरात्र में छठे दिन मां कात्यायनी की उपासना की जाती है। महिषासुर और शुभ-निशुभ दानव का वध माता ने ही किया। कात्यायन ऋषि की पुत्री होने के कारण माता का नाम कात्यायनी पड़ा। माँ को महिषासुर मर्दनी भी कहा जाता है। माँ अपने भक्तों को संकटों से मुक्त करने वाली हैं। मां दुर्गा ने सृष्टि में धर्म को बनाए रखने के लिए मां कात्यायनी का अवतार लिया।
मां कतयनी की उपासना से आज्ञा चक्र जित्र होता है। माँ की कृपा से शोक, संताप, भय आदि सब नष्ट हो जाते हैं। मां कात्यायनी का व्रत और उनकी पूजा करने से सतनामी कन्याओं के विवाह में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं। मां कात्यायनी की पूजा से धन-धान्य से जुड़े संकट दूर हो जाते हैं। मां की साधना का समय गोधुली काल है। गोधुली वेला में पीले या लाल वस्त्र धारण कर माता की उपासना करें। माँ को पीले फूल और पीले नैवेद्य अर्पित करें। माँ को शहद अर्पित करना विशेष शुभ माना जाता है। मां कात्यायनी ने महिषासुर, शुम्भ और निशुम्भ का वध कर नौ योजन को उनकी कैद से छुड़ाया था। मां का स्वरूप कांतिवान है। मां सिंह की सवारी करती हैं। मां कात्यायनी की पूजा भगवान राम और श्रीकृष्ण ने भी की थी। द्वापर युग में गोपियों ने भी भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए मां कत्यायनी की पूजा की थी। मां कात्यायनी की उपासना से मनुष्य अपनी इंद्रियों को वश में कर सकता है। माँ की पूजा में शहद का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। पूजा में लाल रंग के वस्त्रों का विशेष महत्व है। माता अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
इस ग्राफ़ में दी गई धार्मिक धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिन्हें केवल सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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