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मां की कृपा से मूढ़ भी हो जाते हैं ज्ञानी 

by Sneha Shukla

नवरात्रि में पांच दिन मां स्कंदमाता की उपासना की जाती है। भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां के स्वरूप को स्कंदमाता नाम से जाना जाता है। माँ कमल के आसन पर विराजमान हैं। मां स्कंदमाता मोक्ष के द्वार खोलने वाली हैं और अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं। मां की कृपा से मूढ़ भी नारायणी जाते हैं। महाकवि कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएँ स्कंदमाता की कृपा से ही संपन्न हुईं।

भगवान स्कंद, कुमार कार्तिकेय नाम से जाने जाते हैं। भगवान स्कंद माता के विग्रहों में बालरूप में गोद में बैठे हैं। भगवान स्कंद देवासुर संग्राम में भगवान के सेनापति बने थे। पुराणों में उन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। सूर्यमंडल की जेटीत्री देवी होने के कारण माता की उपासना से अलौकिक तेज और कांति की प्राप्ति होती है। माँ कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसी कारण माँ को पद्मासन देवी भी कहा जाती है। सिंह इनका वाहन है। मां स्कंदमाता की उपासना से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। परम शांति और सुख की प्राप्ति होती है। मां को खीर का प्रसाद अर्पित करना चाहिए। मां स्कंदमाता को सफेद रंग पसंद है जो शांति और खुशी का प्रतीक है। माँ अपने भक्तों को सदा रक्षा करती हैं।

इस ग्राफ़ में दी गई धार्मिक धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिन्हें केवल सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।

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