नवरात्र में तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। मां अपने ललाट पर घंटे के आकर का अर्धचंद्र धारण करती हैं। इसी कारण माँ को चंद्रघंटा ने कहा है। उन्होंने असुरों का नाश करने के लिए इस स्वरूप को धारण किया। मां की कृपा से साधक को आलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं। दिव्याँजों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियाँ सुनाईं देने लगती हैं। इन क्षणों में साधक को बहुत सावधान रहना चाहिए। मां की आराधना से वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता, विनम्रता का विकास होता है।
मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार किया। माँ का स्वरूप परम शांतिदायक और कलकारी है। मां चंद्रघंटा की कृपा से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक दशरमी व निर्भय हो जाती है। मां चंद्रघंटा की उपासना से मनुष्य सभी सांसारिक कष्टों से मुक्ति पाता है। मां की उपासना में दूध की प्रधानता होनी चाहिए। मां को दूध या खीर का भोग लगाएं। माता चंद्रघंटा को शहद का भोग भी लगाया जाता है। माँ को सिंदूर अर्पित करने की परंपरा है। मां चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए सुनहरे रंग के कपड़े धारण करने चाहिए। मां चंद्रघंटा को अपना वाहन सिंह बहुत प्रिय है और इसीलिए सुनहरे रंग के कपड़े पहनना शुभ है। मां चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत सुंदर, मोहक, आलौकिक शांतिदायक और कलकारी है। मां चंद्रघंटा अपने भक्तों को आलौकिक सुख प्रदान करने वाली हैं।
इस ग्राफ़ में दी गई धार्मिक धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिन्हें केवल सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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