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यूपी में पंचायत चुनाव बीजेपी के लिए ख़तरे की घंटी तो नहीं !

यूपी में पंचायत चुनाव बीजेपी के लिए ख़तरे की घंटी तो नहीं !

by Sneha Shukla

<पी शैली ="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> लखनऊ: कोरोना के क़हर के बीच यूपी में हुए पंचायत चुनाव बीजेपी के लिए कुछ खास नहीं रहे। अखिलेश यादव की पार्टी को उम्मीद से बढ़ कर मिली है। बीजेपी तो अपने गढ़ में ही ढेर हो गई। आठ महीने बाद यूपी में विधानसभा के चुनाव हैं। उससे पहले पंचायत चुनाव में झटका लगने से बीजेपी कैंप में दिल्ली तक चिंता बढ़ गई है। अगर इसे अगले साल के चुनाव से पहले सेमी फ़ाइनल समझा जाए तो संकेत बीजेपी के लिए अच्छे नहीं हैं। अगर नतीजों का कनेक्शन कोरोना से भी जुड़ा तो समझिए ये ख़तरे की घंटी है।

यूपी में पंचायत चुनाव के नतीजों के मायने समझने के लिए अयोध्या के आंकड़े को पढ़िए। वही अयोध्या को, जिसके रामलला के नाम पर बीजेपी दशकों से राजनीति करती रही है। राम मंदिर का निर्माण तो शुरू हो गया है लेकिन चुनाव में बीजेपी को ज़बरदस्त झटका लगा है। जिला पंचायत की यहां 40 सीटें हैं। राम नगरी अयोध्या में समाजवादी पार्टी को 24 सीटें मिलीं। भगवाधारी बीजेपी के खाने में बस 6 मिनट में ही आई.एन. बहुत ख़राब नतीजे की उम्मीद तो बीजेपी को दूर दूर तक नहीं थी। बीजेपी से ठीक छह गुना समाजवादी पार्टी को मिल गई। अब बीजेपी के नेता दलील दे रहे हैं कि बागियों के कारण पार्टी नेताओं की हार हो गई है .. लेकिन इतना तो तय है कि & lsquo; जय श्री राम & rsquo; के नारे वाली बीजेपी की अयोध्या में इस हार की लंबे समय तक चर्चा होती रहेगी। इस चर्चा की टीस पार्टी के अगले चुनाव तक दर्द रहेगा। यूपी की योगी सरकार तो अयोध्या को अपने बेहतर काम काज का इना बताती रही है। यहीं से उसका हिंदुत्व का भी एजेंडा चलता है। दीवाली पर राम नगरी में लाखों दीए जलाने की परंपरा योगी सरकार ने ही शुरू की है।

वाराणसी में भी पंचायत चुनाव में बीजेपी का बैंड बाजा गया। वाराणसी में जो पीएम नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र हैं। उसी बनारस में समाजवादी पार्टी ने झंडा गाड़ दिया। यहां आम आदमी पार्टी से लेकर ओम प्रकाश राजभर की पार्टी ने भी खाता खोला। बीजेपी को 8 तो समाजवादी पार्टी को 14 सीटों पर जीत नसीब हुई। बीएसपी को 5 और बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल के खाते में 3 प्रविष्ट आईएएन। बीजेपी तो वाराणसी में भी अपना मान सम्मान नहीं बचा। यहां की हार को सीधा मोदी फ़ैक्टर से जोड़ा जाता रहा है।

योगी सरकार के मंत्रियों के नाते रिश्तेदार भी चुनाव हार गए

गोरखपुर के चुनाव नतीजे भी बीजेपी के लिए परेशानी की वजह हैं। योगी आदित्यनाथ के लिए तो ये व्यक्तिगत रिटर्न का मामला बन जाता है। वे यहां से लगातार 5 बार लोकसभा के सांसद रहे। ये उनका कर्मभूमि है। लेकिन वही गोरखपुर में बीजेपी और समाजवादी पार्टी का मुक़ाबला बोगरी पर छूट गया। दोनों ही पक्षों को 19-19 में मिला। बीएसपी के हिस्से में 2 और कांग्रेस को तो एक ही सीट नसीब हुई। निर्दलीय और बक्शी 27 पुरस्कार जीतने में कामयाब रहे।

पिछले कई चुनावों में जीत सिर्फ़ और सिर्फ़ बीजेपी को ही नसीब हुई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो बीजेपी और उनकी सहयोगी पार्टी को 80 में से 73 सीटें मिली थीं। बीएसपी का खाता खुला नहीं है। समाजवादी पार्टी को 5 और कांग्रेस को 2 सीटें मिलीं। फिर 2017 के विधानसभा चुनाव में तो बीजेपी ने सबका सूपड़ा साफ कर दिया। फिर पिछले लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव, मायावती और चौधरी अजीत सिंह साथ में बीजेपी का विजय रथ भी रुक गया। लेकिन पहली बार पंचायत चुनाव के बहाने अखिलेश यादव को मुस्कुराने का मौक़ा मिला है। आख़िर पंचायत चुनाव में बीजेपी अच्छा क्यों नहीं कर पाई? क्या इसका कनेक्शन कोरोना से भी है? अगर ऐसा है तो बीजेपी के लिए ये शुभ संकेत नहीं है। क्योंकि बंगाल में आख़िरी चार चरणों के चुनाव में भी बीजेपी पहले से कमजोर हुई है। सत्ता में रहते हुए भी बीजेपी के बड़े बड़े नेताओं और योगी सरकार के मंत्रियों के नाते रिश्तेदार भी चुनाव हार गए।

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