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प्रयागराज। यूपी में जहरीली शराब का कहर लगातार बढ़ता ही जा रहा है। मिलावटी शराब पीने से होने वाली मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। हालात कितने बेकाबू होते रहे हैं इसका अंजाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले आठ दिनों में अकेले प्रयागराज और उससे सटे हुए दो जिलों में 25 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। तमाम लोग अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती होकर मौत के खिलाफ जीवन जीतने की जंग लड़ रहे हैं। होली के त्योहार और पंचायत चुनावों के दौरान यह आंकड़ा और तेजी से बढ़ने की आशंका है।
यह हाल तब है, जब सूबे की सरकार ने जहरीली शराब से मौत की घटनाओं को रोकने के लिए कानून में बदलाव किया है। प्रशासन ने ज्यादातर मामलों में सख्त कार्रवाई की है। इसके बावजूद अवैध शराब के गोरखधंधे का फलना-फूलना सिस्टम पर सवाल खड़ा करता है। कई बड़े अधिकारी अपनी जेबें गर्म कर लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
अफसरों की मिलीभगत से फल-फूल रहा कारोबार
अवैध शराब के इस काले धंधे को पूरी तरह खत्म कर पाना कतई आसान भी नहीं है, क्योंकि यह काम अब गांव-गांव, गली-गली कुटीर उद्योग की तरह फैल गया है। दर्जनों और सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों की संख्या में लोग मृत्यु को रोकने के कारोबार से फल-फूल रहे हैं। बड़े -बड़े माफियाओं ने इस गोरखधंदे पर कब्जा कर लिया है। सरकारी अमले के जिन जिम्मेदार लोगों पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है, वही अपने हिस्से और एक्स्ट्रा कमाई के फेर में न सिर्फ नजरें फेर रहे हैं, बल्कि अवैध धंधे की इस फसल को खाद-पानी देकर उसे बढ़ाने में लगे हैं। कहा जा सकता है कि जाम के नाम पर इकट्ठा हुए लोगों का ऐसा निकास नेक्सस तैयार हो चुका है, जिसे तोड़ना कतई आसान नहीं है।
अवैध शराब बनाने और बेचने का काम अब हर चौथे-पांच गांव में होता है, वह भी चोरी -पीपये नहीं, बल्कि धड़ल्ले से। सड़कों-रास्तों और खुले मैदानों में भट्टियां धपरती हैं। आबकारी विभाग, पुलिस महकमे और प्रशासन के अन्य जिम्मेदार लोगों को एक-एक बात की जानकारी होती है। सबका अपना हिस्सा तय होता है। मिलीभगत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकारी ठेकों से अवैध शराब बिकने लगी है। पिछले साल नवंबर महीने में प्रयागराज के फूलपुर इलाके में जिन सात लोगों नेoutच वाली दारू पीकर दम तोड़ा था, उन सभी ने सरकारी ठेके से मौत का जाम खोला था।
काले कारोबार को सरकारी संरक्षण मिल रहा है
जानकारों का कहना है कि सरकार भले ही लाख दंभ भर लें, लेकिन इसका कोई खास असर इसीलिए नहीं पड़ेगा क्योंकि जिन पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है, वही अपनी जेबें भरने के लालच में इस गोरखधंधे को बढ़ाते हैं। काला कारोबार करने वालों को संरक्षण तक दिया जाता है। शराब के लिए आवश्यक रोजगार पाने और और उनके परिवार का पेट पालने वाले भी आसानी से इससे नहीं छुड़ा पाते हैं। अगर इन लोगों को जागरूक करने के लिए रोजगार के दूसरे साधन मुहैया करा दिए जाएं तो शायद कुछ लोगों का दिल पसीज सकता है।
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