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महात्मा विदुर का नाम महाभारत काल के विद्वानों में गिना जाता है। महात्मा विदुर हस्तिनापुर के प्रधान और कारव-पांडवों के काका थे। विदुर महाराज ने विदुर नीति ने जीवन से जुड़ी आचार्य चाणक्य की तरह कई नीतियों का वर्णन किया है। कहा जाता है कि आज भी विदुर जी की ये नीति व्यक्ति को मुश्किल समय से निकलने व जीवन को सरल व आसान बनाने में मदद करती हैं। विदुर महाराज की नीतियों में धर्म, दर्शन, काम व मोक्ष का समावेश पाया जाता है। जानिए विदुर महाराज के अनुसार, कैसे व्यक्ति को मिलता है मान-सम्मान:
नसवते प्रशाँधी निंदिति न सेवते।
अनास्तिकः श्रद्दापन एतत् पंडितलक्षणम् ।।
विदुर जी कहते हैं कि जो लोग प्रशंसनीय कार्यों में लगे रहते हैं और बुरे कार्यों से दूर रहते हैं, जो नास्तिक नहीं होते हैं और सदविचारों का पालन करते हैं। उनमें पंडित होने के लक्षण दिखते हैं। महात्मा विदुर इस श्लोक में कहते हैं कि समाज के प्रशंसित कार्य करने और गैर कानूनी कार्यों से दूर रहने का गुणवादी व्यक्ति को बुद्धिमान बनाता है।
यहाँ नास्तिक का अर्थ अलग है। आमतौर पर नास्तिक का अर्थ ईश्वर में आस्था न रखना समझा जाता है। लेकिन यहाँ इसका अर्थ है कि ‘ऐहिक (इस लोक के) संसार के जीवन से परे भी कुछ है’ इस बात में विश्वास रखने को आस्तिकता कहा जाता है। विदुर जी कहते हैं कि जीवन के परे क्या है, इसका ठीक-ठीक ज्ञान न होने पर भी ‘कुछ’ में भरोसा रखने वाला आस्तिक कहलाता है।
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विदुर जी कहते हैं कि जब व्यक्ति अपना जीवन इस तरह से गुजारने लगता है तो उसे समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। सदविचारों में श्रद्धा रखने वालों की हर कोई तारीफ करता है। ऐसे व्यक्ति का जीवन सफल माना जाता है। विदुर जी के अनुसार, समाज के बनाए गए नियमों का पालन करना ही बुद्धिमान का लक्षण है।
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