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होलाष्टक में कम हो जाती है निर्णय लेने की क्षमता, हनुमान जी की करें उपासना  

by Sneha Shukla

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फाल्गुन माह भगवान श्रीकृष्ण और भगवान शिव को समर्पित है। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है, इसके अगले दिन सुबह रंग वाली होली खेली जाती है। होलिका दहन से आठ दिन पहले से होलाष्टक लग जाते हैं। माना जाता है कि इन दिनों में वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अधिक रहता है। इन दिनों में शुभ कार्य न करने की सलाह दी जाती है।

होलाष्टक शब्द होली और अष्टक से मिलकर बना है। मान्यता है कि कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या इसी दौरान स्पष्ट कर दी थी, जिससे नाराज होकर फाल्गुन अष्टमी तिथि को भगवान शिव ने प्रेम के देवता कामदेव को भस्म कर दिया था, जिसके बाद पूरी सृष्टि नीरस हो गई। कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव की अराधना कर पुनः कामदेव को पुनर्जीवित करवाया। इन आठ दिनों में मन में उल्लास लाने को लाल या गुलाबी रंग का प्रयोग किया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण भी इन आठ दिनों में गोपियों संग होली खेलते रहे। होलाष्टक में अधिक से अधिक देव आराधना व मंत्र साधना करनी चाहिए। होलाष्टक की अवधि में निर्णय लेने की क्षमता काफी कमजोर हो जाती है, जिससे कई बार गलत निर्णय भी हो जाते हैं। होलाष्टक में शुभ कार्यों की मनाही है लेकिन भगवान की पूजा कर सकते हैं। होली के अवसर पर घर में अशांति दूर करने के लिए नारियल होलिका में समर्पित करें। देवस्थान पर कपूर जलाशय। छात्र चंदन और मार्कर पांच तरह का सूखा मेवा होलिका में समर्पित करें। होलाष्टक में पूजा-पाठ करने और भगवान का स्मरण भजन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस दौरान भगवान नृसिंह और हनुमानजी की पूजा का विशेष महत्व है।

इस ग्राफ़ में दी गई बदलाव धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिन्हें केवल सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।



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