अक्षय तृतीया 2021: हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है, क्योंकि इस वर्ष में आने वाले 4 अबूझ मुहूर्तों में से एक है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में अक्षय तृतीया के अलावा देवउठनी एकादशी, वसंत पंचमी व भड़ली नवमी को भी अब पूजन मुहूर्त माना गया है। अक्षय तृतीया हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है। हिंदू धर्म में यह तिथि अत्यंत शुभ होती है। इस दिन कोई भी शुभ कार्य करने से शुभ फलदायी होता है। आइये जानें कि यह तिथि इतनी शुभ क्यों होती है।
प्र तृतीया क्यों? है इसलिए शुभ?
इस तिथि पर किए गए दान -पुण्य का फल अक्षय होता है अर्थात इस दिन दिया गया-दान का फल कभी नष्ट नहीं होता है। इसके लिए यह सनातन धर्म में दान धर्म का अचूक काल माना गया है। इस तिथि को चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं, क्योंकि यह 8 चिरंजीवियों में से एक, परशुराम की जन्म तिथि भी है।
पौराणिक मान्यता है क्या है?
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, वैशाख मास विष्णु भगवान को अत्यंत प्रिय है। यह दान-पुण्य, धर्म-कर्म करने के लिए सभी महीनों में सबसे उत्तम होता है। यह भगवान विष्णु भक्ति का शुभ काल है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि {अक्षय तृतीया} को भगवान विष्णु के नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम के अवतार हुए थे। इसीलिए इस दिन परशुराम जयंती और नर-नारायण जयंती मनाई जाती है। त्रेतागो की शुरुआत भी इसी दिन से हुई थी। मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा भी महापुण्यदायी और महामंगलकारी होती है।
इस दिन इन चीजें के दान का है विशेष परिवेश
इस शुभ तिथि के दिन जौ, सत्तू, चना, गेहूं, गन्ने का रस, जल से भरे कलश, दूध से बनी चीजें और स्वर्ण का दान दिया जाता है। इस तिथि को किए गए दान-पुण्य का फल कभी नहीं नष्ट होता है। इस तिथि को पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने और ब्राह्मणों को भोजन कराने से अनंतफल प्राप्त होता है।
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