Home » Akshaya Tritiya 2021 Akha Teej : भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए करें ये छोटा सा काम
DA Image

Akshaya Tritiya 2021 Akha Teej : भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए करें ये छोटा सा काम

by Sneha Shukla

अक्षय तृतीया के पावन दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है। इस दिन विधि- विधान से माता लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा- अर्चना करने से मनोदशा और फल की प्राप्ति होती है। हिन्दू धर्म में वृद्धि अच्छी होने के साथ-साथ स्वस्थ्य रहने के लिए भी अच्छा है। इस वर्ष 14 मई, शुक्रवार को अक्षय तृतीया का पावन पर्व मनाया जाएगा। पावन भगवान विष्णु विष्णु और माता लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

  • श्री लक्ष्मी चालीसा, श्री लक्ष्मी चालीसा

। चौपाई।
सिंधु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विगत दो मोही वि

आप समान निन कोई उपकारी नहीं। सब विधि पुरवहु अस हमारा ह
जय जय जनता जगदंबा सबकी तुम हो अवलंबा॥1॥
आप घटे हुए घटते हैं। विनती वही हमारी खासी सी
जगजनी जय सिंधु कुमारी। दीनन की तुम हितकारी हो ॥2 हो

विनवौं नित्य. कृपा करौ जग जननी भवानी नि
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लाइजैैजिक अपराध बिसारी॥3

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी सुन
ज्ञान बुद्घी जय सुख की जानकारी। संकट हरो माता॥4॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो िन्
चौहत्तर रत्न में आप सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी ॥5 नि

कब कब जन्म कहाँ प्रभु लीन्हा। रूप बदल जाता है तहँ सेवा कीन्हा की
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥6 ध

तो तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा
मध्य तोहि इंटर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी द7 भु

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहत लौ महिमा कहौं बखानी ौ
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन फल फली॥8॥

तजी छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई भ
और हाल मैं कहूं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई ॥9 मन

ताको कोई दुख नोई। मन वांछित पावै फल सोई फल
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप परम बंधन हारीनी हार10 हार

जो अवैद्य। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै सु
ताकौ कोई न रोग सताव। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ॥11 प

पुत्रहीन अरु संपति हीना। आंन बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै दिल12 न

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करत गौरीसा गौ
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी काहू की आवै13॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा और
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोयज में कहूं नाहीं॥14॥

बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई। ले परीक्षा ध्यान दें॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा ॥15 उपज

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। में व्याप्य गुण खान सबी
तुहरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयाल कहुं नाहिं१६॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट कातिल मोहि दीजै॥
डिफ़ॉल्ट करि क्षमा करें। दर्शन दजै दशा निहारी ॥17 शा

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी छ
नवीन मोहिन ज्ञान बुद्घि में तनाव में है। सब जानत हो अपने मन में ॥18 मन

रूप चतुर्भुज करके धारण। दुख मोर अब करहु निवारण ह
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नविन अधिकाई ॥19 मोह

। दोहा
त्राहि त्राहि दुख हरणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नष्ट लक्ष्मी
रामदास धरी ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर,

  • श्री विष्णु चालीसा, श्री विष्णु चालीसा

दोहा

विष्णु सत्य रक्षा सेवक।
कीरत कुछ वर्णन करुँ दीजै ज्ञान बताय।

चौपाई

नमो विष्णु भगवान खरारी।
दुख नशावन अखिल बिहारी अख

प्रबल अवतार में शक्ति तुम्हारी।
त्रिभुवन फैल रही उजियारी उज

सुंदर रूप मनोहर सूरत।
सरल स्वभाव मोहनी मूरत ूरत

तन पर पीतांबर अति सोहत।
बैजन्तीलैंड मन मोहत मन

शंख चक्र कर गड़ा बिराजे।
देखना दैत्य असुर दल भाजे

सत्य धर्म मद लोभ नोगे।
काम क्रोध मद लोभ न छाजे न

संत भक्ति मनरंजन।
दनुज असुर दानव दल गंजन न

सुख उपजाय तिल सब भजन।
दोष मिटाय करत जनजन जन

पाप काट भव सिंधु उतारण।
दुख नाशकर भक्त उबारण उ

करत अनेक रूप प्रभु धारण।
आप विभाग के

धरणी धेनु बन तुमहिं पुकारा।
तब तक आप राम का धारा तब

लोड कम करने वाला समूह मारा गया।
रंक आदिक को संहारा

आपने वराह रूप बनाया।
हरण्याक्ष को मारिड़या॥

पहुँच मत्स्य पालक सिंधु निर्मित।
चौराहा रतन को मार्या॥

अमिलख असुरन द्वंदया।
रूप मोहनी आप॥

देवन कोदर पान बनाया।
असुरन को छवि से बहलाया बह

कूर्म रूप धर सिंधु मझाया।
मंदद्राचल गिरी तुरत

शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।
भस्मासुर को रूप दिखाया गया को

वेदन को जब असुरदया।
कर उन्हें प्रबंधित।

मोहित बनकर खलही नचाया।
यह वही है जो भस्म से पता

असुर जलंधर अति बलदाई
शंकर से उन कीन्ह लडाई न्

पार शिव सकल बनाया।
कीन सती से छल खल जाई छ

सुमिरन की तुमको शिवरानी।
बतलाई सब विपत कहानी कहानी

तब आप मुन्नेश्वरयनानी बने।
वृन्दा की सब सुरति भुलानी सुर

देख तीन दनुज पैतानी।
वंदा आय पैप लपटानी॥

हो टच धर्म
हना असुर उर शिव पैतानी॥

तुम ध्रुव प्रहलाद उबारे।
हिरणाकुश आदिक खल मारे आद

गणिका और अजामिल तारे।
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे िन्

हरहु सकल संताप हमारा।
कृपा करहु हरि श्रृजन हरि॥

देखहुँ मैं निजी पासश तुम्हारा।
दीन बंदु भक्तन हितकारे॥

आपका स्वागत है।
करहु दया अपना मधुसूदन मधु

जानु न योग्य जप पूजन।
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन तु

शीलदया सन्तोष सामंजस्य।
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ्र

करहुं किस विधिपूजक।
कुमति विलोक होत दुख भीषण त

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण।
कौन भांति मैं करहुप्रिंटन ह

सुर मुनि करत सदा सेवकाई।
हर्षित रहत परम गति पाई त

दीन दुखिन पर सदा सहाई।
निज जन जान अपने आप में

पाप दोष संताप नशाओ।
भव-बंधन से मुक्त कराओ॥

सुख संपत्ति दे खुशी उपजाओ।
निजी चरन का दास बनाना बनाओ

हमेशा के लिए विनय सुन।
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै जन

HomepageClick Hear

Related Posts

Leave a Comment