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Amalaki Ekadashi 2021: आमलकी एकादशी की ये है सही डेट, पौराणिक कथा से जानें कैसे हुई थी आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति

by Sneha Shukla

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आमलकी एकादशी 2021: हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है। एकादशी को सभी व्रतों में सर्वोत्तम माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष एकादशी को आमलकी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इसे आंवला एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन आंवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा कर लोग उपवास रखते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत व्यक्ति को रोगों से मुक्ति दिलाने वाला होता है। इस वर्ष आमलकी एकादशी व्रत 25 मार्च (गुरुवार) को रखा जाएगा।

आमलकी एकादशी शुभ मुहूर्त–

एकादशी तिथि का प्रारंभ – 24 मार्च को सुबह 10 बजकर 23 मिनट से।
एकादशी तिथि समाप्त – 25 मार्च को सुबह 09 बजकर 47 मिनट तक।
एकादशी व्रत पारण का समय – 26 मार्च को सुबह 06:18 बजे से 08:21 बजे तक।

आंवला एकादशी की महात्मय कथा-

आचार्य मनजीत धर्मध्वज ने बताया कि विष्णु पुराण के अनुसार एक बार भगवान विष्णु के प्रमुख से चंद्रमा के समान प्रकाशित बिंदू प्रकट होकर पृथ्वी पर गिरा। उसी बिंदू से आमलक अर्थात आंवले के महान पेड़ की उत्पत्ति हुई। भगवान विष्णु के मुख से प्रकट होने वाले आंवले के वृक्ष को अभिनय कहा गया है। इस फल के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा कि इस फल के स्मरणमात्र से रोग और ताप का नाश होता है और शुभ पैरों की प्राप्ति होती है। यह फल भगवान विष्णु जी को अत्यधिक प्रिय है। इस फल को खाने से तीन गुना शुभ पैरों की प्राप्ति होती है।

आमलकी एकादशी पूजा विधि-

-भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री के साथ आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों ओर की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें।
– पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में भगवान, तीर्थों और सागर को आमंत्रित करें।
– कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहने हों।
– अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुरामजी की पूजा करें।
– रात्रि में भगवत कथा व भजन-कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें।
– द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा चलो साथ ही परशुराम की मूर्तिसहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। ये क्रियाओं के पश्चात परायण द्वारा अन्न जल ग्रहण करें।

(इस आलेख में दी गई जानकारी धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जो केवल सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत किया गया है।)



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