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Amalaki Ekadashi 2021: आमलकी एकादशी के दिन इस विधि-विधान से करें पूजा, मनोकामना पूरी होने की है मान्यता

by Sneha Shukla

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फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस वर्ष आमलकी एकादशी 25 मार्च 2021, दिन गुरुवार को है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने से भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके साथ ही व्रती को मोक्ष प्राप्ति होने की भी मान्यता है। आमलकी एकादशी के दिन शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। जानिए आमलकी एकादशी के दिन विधि-विधान के साथ कैसे करें भगवान विष्णु की पूजा-

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आमलकी एकादशी पूजा विधि-

1. आमलकी एकादशी व्रत के पहले दिन यानी दशमी तिथि को व्रती को एकादशी व्रत के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।
2. इसके बाद आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर व्रत का संकल्प करना चाहिए।
3. संकल्प के दौरान व्रती को कहना चाहिए कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता और मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो जाए इसके लिए श्रीहरि मुझे अपना शरण में रखें।
4. इसके बाद नीच बताए गए मंत्र से संकल्प लेने के पश्चात षोड्शोपचार सहित भगवान की पूजा करें।

मम कायचिकित्साचिकित्सा अग्निकोशकोपदकदुरित क्षयतः
श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्तयै श्री परमेश्वरप्रीति
कामनायै आमलकी एकादशी व्रतहं करिष्ये

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5. अब भगवान विष्णु की पूजा के बाद पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए।
6. सबसे पहले आंवले के वृक्ष के चारों ओर की भूमि को साफ करें। अब पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें।
7. इस कलश में भगवान, तीर्थों और सागर को आमंत्रित करें। कलश में तेजस्वी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें।
8. कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहने। अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुरामजी की पूजा करें।
9. आमलकी एकादशी के दिन रात्रि में भगत कथा व भजन-कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें।
10. द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा दें और परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करना चाहिए।
11. इसके बाद व्रत का पारण कर अन्न जल ग्रहण करें।



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