नवरात्रि 2021: आज से शुरू हो चुके त्योहार नवरात्रि के 9 दिनों तक माता-पिता के 9 अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है।]अपने पहले स्वरूप में मां ‘शैलपुत्री’ के नाम से जाना जाता हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। इनकी पूजा से चंद्रमा से संबंधित दोष समाप्त होते हैं। नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। उन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं। मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्र में तीसरे दिन इनकी पूजा होती है। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है, जिससे इनका यह नाम पड़ा। इस देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव दूर होते हैं।
नवरात्र पूजन के चौथे दिन देवी के कूष्मांडा के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। मान्यता है कि उन्होंने अपनी हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था। उनकी आठ भुजाएँ हैं। मां कूष्मांडा की पूजा से सूर्य के कुरूपों से बचा जा सकता है। नवरात्र का पांचवां दिन स्कंदमाता की पूजा का होता है। माना जाता है कि उनकी कृपा से मूर्ख भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण उन्हें स्कंदमाता नाम से जाना जाता है। ये बुध ग्रह के बुरे प्रभाव को कम करते हैं।
मां दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। इनकी उपासना से भक्तों को आसानी से धन, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। महर्षि कात्यायन ने पुत्री प्राप्ति की इच्छा से माँ भगवती की कठिन तपस्या की तब देवी ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिससे उनका यह नाम पड़ा। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना की जाती है। कालरात्रि की पूजा करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुल जाते हैं और सभी असुरी शक्तियों का नाश होता है। देवी के नाम से ही पता चलता है कि येका रूप भयानक है।
मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। उनकी उम्र आठ साल की मानी गई है। उनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद होने की वजह से उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा गया है। इस देवी की पूजा से राहु के बुरे प्रभाव कम होते हैं। नवरात्र पूजन के नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है। इस दिन शहरी विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वालों को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री की कृपा से ये सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं। मां सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं।
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