परशुराम जयंती अक्षय तृतीया: हिंदू धर्म के अनुसार, भगवान परशुराम का जन्म भार्गव वंश में भगवान विष्णु के 6 वें अवतार के रूप में हुआ था। माना जाता है कि इनका जन्म त्रेता युग में हुआ था। हिन्दू पंचांग के अनुसार परशुराम की जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। हिंदू धर्म में इस तिथि को अक्षय तृतीया भी कहते हैं। माना जाता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य अक्षय रहता है।
परशुराम जयंती तारीख और शुभ मुहूर्त
- परशुराम जयंती तारीख: 14 मई 2021, शुक्रवार
- तृतीया तारीख प्रारंभ करें: 14 मई 2021 (सुबह 05:38)
- तृतीया तारीख समाप्त हो गया: 15 मई 2021 (सुबह 07:59 बजे)
परशुराम के जन्म से है संबंधित पौराणिक कहानी
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, पृथ्वी पर राजाओं द्वारा किए जा रहे अन्याय, अधर्म, पाप और जुल्म का विनाश करने के लिए भगवान परशुराम अवतरित हुए। भगवान विष्णु और भगवान शिव के संयुक्त गुण पाए जाते हैं। शिव भगवान से उन्हें संहारक का गुण और विष्णु भगवान से पालक का गुण प्राप्त हुआ था। भगवान परशुराम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। जिस दिन भगवान परशुराम का अवतार हुआ था उस दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। इसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम सात चिरंजीवी पुरुषों में से एक हैं। वह आज भी इस धरती पर जीवित हैं। इन्होनें ही सहस्त्रार्जुन जैसे मदांध का वध किया था। कहा जाता है कि महर्षि जमदग्नि के चार पुत्र थे। उनमें से परशुराम चौथे थे। जन्म के समय परशुराम भगवान का नाम राम माना जाता है। उन्हें रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, जमदग्न्य, भृगुवंशी आदि नामों से भी जाना जाता है।
मान्यता है कि राम {परशुराम} ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कई अस्त्र शस्त्र दिए। इसी में भगवान शिव का परशु भी था। यह अस्त्र राम को बहुत प्रिय था। राम इसे हमेशा अपने साथ लेकर चलते थे। जिसके कारण उन्हें परशुराम ने कहा। राम ने बिना किसी अस्त्र से असुरों का विनाश कर दिया।
मान्यता है कि भारत वर्ष के अधिकांश गांव उन्हीं के बसाए थे। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चलाकर गुजरात से केरल तक समुद्र के पीछे धकेलते हुए नई भूमि का निर्माण किया। उन्हें भार्गव नाम से भी जाना जाता है।
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