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Pradosh Vrat 2021: इस दिन है अप्रैल का पहला प्रदोष व्रत, इन व्रत नियमों का पालन करने से प्रसन्न होंगे महादेव

by Sneha Shukla

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हर महीने शुक्ल व कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाता है। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को बेहद शुभ फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस महीने का पहला प्रदोष व्रत 09 अप्रैल, दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। शुक्रवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को शुक्र प्रदोष कहते हैं।

शिव पुराण के अनुसार, भोलेनाथ को सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है। भगवान शिव प्रदोष व्रत के दौरान कुछ नियमों का पालन करने से भी प्रसन्न होते हैं और भक्त पर हमेशा अपनी कृपा बरसाते हैं। जानिए प्रदोष व्रत नियम, व्रत कथा और पूजन सामग्री-

प्रदोष व्रत नियम- प्रदोष व्रत यूं तो निर्जला रखा जाता है इसलिए इस व्रत में फलाहार का विशेष महत्व होता है। प्रदोष व्रत को पूरे दिन रखा जाता है। सुबह नित्य कर्म के बाद स्नान करें। व्रत संकल्प लें।) फिर दूध का सेवन करें और पूरे दिन उपवास धारण करें।

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प्रदोष में क्या नहीं करना चाहिए- प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। प्रदोष व्रत में अन्न, नमक, काली मिर्च आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रत के समय एक बार ही फलाहार ग्रहण करना चाहिए।

पूजा की थाली में क्या-क्या सामग्री होनी चाहिए प्रदोष व्रत में पूजा की थाली में अबीर, गुलाल, चंदन, अक्षत, फूल, धतूरा, बिल्वपत्र, जनेऊ, कलावा, दीपक, कपूर, अगरबत्ती और फल होना चाहिए।

शुक्र प्रदोष व्रत की कथा

कहा जाता है कि क नगर में तीन मित्र रहते थे। राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और तीसरे धनिक पुत्र। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे। धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, लीखी गौना शेष थी। एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे। ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है। धोनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरंत ही अपनी पत्तीनी को लाने का निचारकरण कर लिया। तब धनिक पुत्र के माता-पिता ने निर्दिष्ट किया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं। ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं माना जाता लेकिन धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी और ससुराल पहुंच गए। ससुराल में भी उसे मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो जिद पर अड़ा रहा और कन्या के माता पिता को उनकी विदाई पड़ी पड़ी। विदाई के बाद पति-पत्नि शहर से निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई।

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दोनों को चिन्हित किया गया लेकिन फिर भी वह चल रहा था। कुछ दूर जाने पर उनका पालाबारियों से पड़ा। जो उनका धन लूटकर ले गए। दोनों घर पहूंचे। वहाँ धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया। उसके पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वे तीन दिन मरेंगे। जब ब्राह्मण कुमार को यह खबर मिली तो वे धनिक पुत्र के घर पहुँचे और उसके माता पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। और कहा कि इसे पत्तीनी सहित वापस ससुराल भेज दें। ढोनिक ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और ससुराल पहुंच गई जहां उसकी हालत ठीक हुई। यानि शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट दूर हो गए।



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