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अब अमेरिकी वैक्सीन देगी भारत में कोरोना को मात ?

अब अमेरिकी वैक्सीन देगी भारत में कोरोना को मात ?

by Sneha Shukla

नई दिल्ली: कोरोना के कहर से जूझ रहे भारत के लिए अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर की वैक्सीन क्या उम्मीद की किरण साबित होगी? दुनिया के कई देशों में इस वैक्सीन का असर देखने के बाद फिलहाल यही कहा जा सकता है कि कोरोना से लड़ाई में यहoc अब तक सबसे ज्यादा कारगर साबित हो रहा है, लिहाजा भारत के लिए भी यह रामबाण बन सकता है।

फाइजर ने इसे जर्मन कंपनी बायोएनटेक के साथ मिलकर बनाया है और इसे 95 प्रति तक असरदार बताया जा रहा है। हालांकि हमारी दोनों देसी वैक्सीन के मुकाबले इसकी कीमत कुछ ज्यादा है लेकिन सरकार के लिए इस वक़्त लोगों की ज़िंदगी से बड़ी प्राथमिकता है और नहीं होना चाहिए। अंतराष्ट्रीय बाजार में इसकी दो डोज की कीमत करीब तीन हज़ार रुपये है, लिहाजा इसे खरीदने के लिए सरकार को ज्यादा मोल-भाव करने के पचड़ों में पड़ने से बचना चाहिए।

बेहतर तो यह होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद ही अपनी अगुवाई में एक ऐसी कमता बना दें जो विदेशों से मिले जाने वाली वैक्सीन, ऑक्सिजन व वेंटिलेटर जैसी जीवनरक्षक चीजों की प्रक्रिया को जल्द व पारदर्शी तरीके से पूरा करे और जहां जैसे भ्रष्टाचार की रत्ती भर भी गुंजाइश हो न रहा। वैसे भी फ़जर ने फैसला लिया है कि वह भारत में को विभाजित -19 वैक्सीन की आपूर्ति केवल सरकारी केंद्र के माध्यम से ही करेगी। इसका मतलब है कि यह अमेरिकी वैक्सीन भारत में केवल सरकारी अस्पतालों में ही उपलब्ध होगा। जैसा होना चाहिए वैसा ही होना चाहिए कि केंद्र सरकार पूरा स्टॉक खरीदे और फिर उसे आबादी व जरूरत के मुताबिक सभी राज्यों को उपलब्ध कराए।

फार्मा जाइंट के एक प्रवक्ता ने कहा, “कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच फ़जर अपने वैक्सीनेशन कार्यक्रम में सरकार को प्राथमिकता देंगे और केवल सरकार कॉन्ट्रैक्ट के माध्यम से ही COVID-19 वैक्सीन की सप्लाई करेगा।”

फाइज़र के इस टीके के 21 दिनों के भीतर दो डोज़ लगाने होंगे। इसे स्टोर करने के लिए माइनस 25 से माइनस 15 डिग्री तक तापमान चाहिए। इंटर्न मार्केट में एक टीके की कीमत लगभग 1500 रुपये है। जाहिर है कि भारत में इसके उपयोग से पहले इसकी कीमत को लेकर चर्चा होगी। संभव है कि भारत की आबादी के लिहाज से मिलने वाले खरीद आर्डर को देख अमेरिकी कंपनी कीमत में कुछ रियारत भी कर दे।

फाइजर की खास बात यह भी है कि उसने 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ अपने लिएविड -19 वैक्सिन का ट्रायल पिछले महीने से ही शुरू कर दिया है। कंपनी ने उम्मेद जेटे ने कहा है कि वह 2022 की शुरुआत में न्यूज़िनो के लिए कोरोनावायरस टीका बाजार में पेश करने में सफल होगी। फ़जर के प्रवृति शैरोन कैस्टिलो के कहता है 26 मार्च को वॉलेंटियर्स के पहले स्टाप कोनर्स ट्रायल के तहत पहली पंचर दी गई। फाइजर और बायोएनटेक के वैक्लाइन को 16 साल और इससे कम उम्र के चाइल्डविच पर ट्रायल के लिए यूएस रिसूलेटर्स ने पिछले साल दिसंबर में ही अपनी मंजूरी प्रदान की थी।

हालांकि वैक्टिन को तैयार करने वाली सहयोगी कंपनी बायोएनटेक की चीफ मेडिकल ऑफिसर ने कहा है कि लोगों को इस वैक्लाइन का तीसरा ट्वीट भी लगवाना पड़ सकता है। बायोएनटेक की को-एक्टिवर और सीएमओ डॉक्टर ओजेम ट्रूसी के अनुसार कोविड -19 वैक्लाइन की वर्तमान में दो डोज दी जा रही हैं। लेकिन वायरस को रोकने और इम्बयुनिटी मजबूत करने के लिए वैक्लाइन की तीसरी डोज की जरूरत भी पड़ सकती है।

फाइजर के सीईओ अल्बर्ट बोरला ने भी उनके इस बयान से सहमति जताई है। डॉक्टर ओजेम ने ही फाइजर के साथ मिलकर इस वैक्सिन्स को डेवलपर किया.उनका मानना ​​है कि जिस तरह से हर साल सीजनल फ्लू से बचने के लिए लोग दवाई लेते हैं, उसी तरह से कोविड -19 की वैक्सीन हर साल की पड़ सकती है। डॉक्‍टर ट्रूसी की मानें तो वैक्‍सीन से मिली हुई इर्मयुनिटी समय के साथ कमजोर पड़ सकती है।उनका कहना था कि 12 महीने के अंदर पूरी तरह से वैक्‍सीनेट होने के बाद तीसरी बार वैक्‍सीन को लगाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। बोरला की मानें तो लोगों को हर साल इस तरह के बूस्टर निशाने की जरूरत पड़ सकती है।

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