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असम में सीएम का नया चेहरा लाना बन गया था बीजेपी की मजबूरी ?

असम में सीएम का नया चेहरा लाना बन गया था बीजेपी की मजबूरी ?

by Sneha Shukla

<पी शैली ="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> नई दिल्ली: पूर्वोत्तर में पहले भगवा सरकार बनने के साथ सर्वानंद सोनोवाल को हटाकर हेमंत बिस्वा सरमा को असम का नया मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने क्या सही फैसला लिया है या फिर कोई और भी कारण हो सकता है? पार्टी के भीतर ही यह सवाल उठ रहा है कि पुराने चेहरे और पार्टी के स्थापित नेताओं को दरकिनार कर ऐसे नेता के हाथ में राज्य की कमान सौंपना कहां तक ​​उचित है, जिस नेता ने महज छह साल पहले तक कांग्रेस के मंचों से बीजेपी के शीर्ष नेताओं को के ख़िलाफ़ जमकर आग उगली हो?

सवाल तो यह भी पूछा जा रहा है कि हेमंत बिस्व सरमा सिर्फ असम ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वोत्तर के क्या इतने ताकतवर नेता बन चुके हैं, जिन्हें सीएम बनाना बीजेपी आलाकमान की मजबूरी बन गई थी? दरअसल, बीते दिनों पांच राज्यों के चुनाव में असम ही इकलौता ऐसा राज्य था, जहां पहले से ही बीजेपी सत्ता में थी। लेकिन तमाम दावों के बावजूद बड़े नेताओं को भी पक्के तौर पर यकीन नहीं था कि पार्टी फिर सत्ता में लौटेगी भी या नहीं।

आमतौर पर जिन राज्यों में बीजेपी को फिर से सत्ता में आने का भरोसा होता है, वहां वह मुख्यमंत्री के पद के चेहरे का एलान पहले की करतूत है। लेकिन असम के मामले में पार्टी ने सर्बानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री पद के अपने उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं किया था, बल्कि उन्होंने कहा कि संसदीय बोर्ड इस पर विचार करेगा।

लिहाज़ा नतीजों के बाद से ही पार्टी के सामने मुश्किल थी कि वो सोनोवाल को चुना जिसने एक बार फिर जीत हासिल करने में मदद की या फिर हेमंत बिस्व सरमा को जो हाल के सालों में प्रदेश में पार्टी का नया और मज़बूत चेहरा बन कर उभरे हैं।

एक तरफ जहां सरमा को भूत भारत में पार्टी की रीढ़ की हड्डी और कैंसर से जुड़े मामलों में गृह मंत्री अमित शाह का करीबी माना जाता रहा है, वहीं दूसरी तरफ अपनी साफ-सुथरी छवि के लिए व्यस्ताने जाने वाले सोनोवाल ने ही दो साल पहले की थी। असम में बीजेपी का परचम लहराया था।

हालांकि चुनाव के दौरान ही हेमंत ने पूरे प्रचार अभियान को अपने इर्दगिर्द केंद्रित करके खुद को मुख्यमंत्री के सबसे मजबूत दावेदार के रूप में पेश कर दिया था औऱ आलाकमान को भी इसका अहसास हो गया था। & nbsp;

हेमंत भले ही महज छह साल के भीतर ही असम में बीजेपी का मजबूत चेहरा बन गए हों लेकिन वह कांग्रेस के भी दमदार नेता हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वे पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के अधीन काम करके ही अपना राजनीतिक करियर बनाया है। लेकिन राजनीति में उन्हें कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया थे। एक तरह से सैकिया ही उनके पहले राजनीतिक गुरु थे। 1991 में जब कांग्रेस की सरकार आई और हितेश्वर सैकिया मुख्यमंत्री बनी, उस समय हेमंत को छात्र और युवा कल्याण के लिए बनी राज्य स्तरीय सलाहकार समिति में सदस्य सचिव बनाया गया। यहीं से उनका राजनीतिक & nbsp; सफ़र शुरू हुआ।

बाद में वे क़रीब 14 साल तक तरुण गोगोई के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में राज्य के वित्त-शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बड़े विभागों के मंत्री रहे। कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बाद सरमा दूसरे सबसे ताक़तवर और प्रभावी नेता बन गए थे।

हालांकि 2015 आते-आते हेमंत कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के समक्ष अलग-थलग पड़ चुके थे। मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर गोगोई के साथ टकराव के इस पूरे मामले में वे ख़ासकर राहुल गांधी की भूमिका से बेहद नाराज हैं। उन्होंने कई बार सार्वजनिक तौर पर राहुल गांधी को & lsquo; घामंडी & rsquo; तक कहा।

2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को बड़ी जीत मिलने के बाद ही हेमंत कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का दामन थामने का मन बना चुके थे और आखिरकार 28 अगस्त 2015 को वे बीजेपी में शामिल हो गए। < पी शैली ="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> देखा जाए तो कांग्रेस छोड़ने के बाद हेमंत ने अपने काम से ख़ुद को बीजेपी में फिर से लॉन्च किया था। यही कारण था कि उन्हे तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के बाद सभी महत्वपूर्ण विभागों का मंत्री बनाया गया।