अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली।
द्वारा प्रकाशित: अमित मंडल
अपडेटेड सन, 09 मई 2021 05:50 AM IST
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हालांकि हिमंत को मुख्यमंत्री बनाए जाने की किसी ने आधिकारिक पुष्टि नहीं की है। लेकिन सूत्रों का दावा है कि रविवार को गुवाहाटी में विधायक दल की बैठक के दौरान मौजूदा मुख्यमंत्री सोनोवाल ही हिमंत के नाम का प्रस्ताव रखेंगे। बारी में सोनोवाल को केंद्रीयता में शामिल किया जाएगा। सोनोवाल पहले भी केंद्रीय खेल मंत्री रह चुके हैं। दोनों शनिवार रात में एक साथ ऑनलाइन विमान से गुवाहाटी के लिए रवाना हो गए हैं। देर रात भाजपा नेतृत्व ने इस बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पार्टी महासचिव अरुण सिंह को केंद्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर भेजने की घोषणा की।
इससे पहले पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने आवास पर गृह मंत्री अमित शाह और संगठन महासचिव बीएल संतोष की मौजूदगी में दोनों नेताओं से मुलाकात की। पहले राज्य के मौजूदा स्वास्थ्य व वित्त मंत्री हिमंत पहुंचे। उनसे बातचीत के बाद पहुंचे सोनोवाल के साथ भी केंद्रीय लोगों ने अकेले में बात की। इसके बाद तीसरे दौर की बातचीत में दोनों को एकसाथ बैठाकर के बीच रास्ता निकालने का प्रयास किया गया। सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व ने दोनों को अलग-अलग केंद्रीय केंद्रीय में शामिल होने का प्रस्ताव दिया। लेकिन दोनों नेताओं ने इस प्रस्ताव पर अपनी असहमति जाहिर की।
इसके बाद रविवार को विधायक दल की बैठक बुलाने का फैसला किया गया। शाम शाम अचानक दोनों पक्षों को एक बार फिर बुलाया गया और चौथे दौर की बैठक हुई। सूत्रों का कहना है कि बैठक में हिमंत के नाम पर सहमति बन गई। हालांकि इससे पहले तीसरे दौर की बैठक के बाद हिमंत ने कहा था कि मुख्यमंत्री कौन होगा, इसकी जानकारी रविवार को विधायक दल के बैठक के बाद लोकप्रिय होगी।
सोनोवाल असम के मूल आदिवासी समुदाय सोनोवाल-काछरी से आते हैं, जबकि सरमा उत्तर पूर्व लोकतांत्रिक गठबंधन के समन्वयक हैं, जो भाजपा की उत्तर पूर्वी राज्यों में सफलता का आधार है। ऐसे में दोनों का एकमात्र दावा मजबूत माना जा रहा था।
सोनोवाल के पक्ष में संघ व क्षेत्रीय प्रभारी, हिमंत के साथ ज्यादातर विधायक थे
इससे पहले बृहस्पतिवार को अमित शाह के रहने पर भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्यों की अनौपचारिक बैठक हुई थी। बैठक में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में असम के क्षेत्रीय प्रभारी के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रभारी ने सोनोवाल का समर्थन किया था। साथ ही संसदीय बोर्ड के दो वरिष्ठ सदस्यों ने भी सोनोवाल का पक्ष लिया। उधर, हिमंत के पक्ष में इस बार जीतने वाले कम से कम तीस विधायकों के अलावा दोनों सहयोगी दल एजीपी और यूपीपी स्टैंड खड़े हैं। साथ ही पूर्वोत्तर के तीन अन्य राज्यों में हिमंत की गहरी पकड़ को देखते हुए भी पार्टी ने उन्हें नाराज करने की स्थिति में नहीं है।
सीएम पद का पहलू घोषित नहीं करने से फंसा पेंच
दरअसल 2016 विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पहले ही सोनोवाल को सीएम पद का दावेदार घोषित किया था। उन्होंने पहली बार किसी उत्तर पूर्वी राज्य में भगवा सरकार का गठन किया था। इस बार गुटबाजी खत्म करने के लिए पार्टी नेतृत्व ने किसी को सीएम पद का उम्मीदवार नहीं बनाया। इसके चलते यह संकेत मिला कि चुनाव के बाद सोनोवाल की जगह हिमंत को भी मौका दिया जा सकता है। इस बार के चुनाव में भाजपा ने 126 सदस्यीय विधानसभा में 60 सीट जीती हैं, जबकि उसकी सहयोगी पार्टियों एजीपी को 9 और यूपीपीएल को छह सीट हासिल हुई हैं।
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