<पी शैली ="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> नई दिल्ली: पिछले एक साल में तेल की कीमतों में 20 रुपये से ज्यादा की वृद्धि देखने को मिली है। हालांकि इस दौरान गैसोलीन और डीजल की वजह से केवल 3-4 रुपये प्रति लीटर का इजाफा देखने को मिला है। बेस कैलकुलेटर और टैक्स क्वालिटी को देखें तो साफ पता चल रहा है कि तेल की कीमतों में आई तेजी के लिए मौजूदा टैक्स अहम कारक है।
पिछले साल 1 मई को दिल्ली में पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल के दाम 69.59 रुपये प्रति लीटर थे। जबकि उस दौरान आरई की संख्या 27.95 रुपये थी। इसी तरह डीजल की कीमत 62.29 रुपये और इसकी आयु योग्यता 24.85 रुपये थी।
गैसोलीन के वितरक बढ़े
इस साल 1 मई के आंकड़ों पर गौर करें तो गैस की वजह से 3.53 रुपये बढ़कर 31.48 रुपये पर पहुंच गया है। वहीं खुदरा मूल्य 20.81 रुपये 90.40 रुपये तक पहुंच गया है। ठीक इसी तरह डीजल की वजह कैलकुलेटर में 4.17 रुपये की तेजी से देखने को मिला लेकिन रीटेल क्वालिटी 20.32 रुपये 82.61 रुपये से बढ़कर प्रति लीटर पहुंच गई है।
पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में तेजी का एक कारक केंद्र सरकार की ओर से पिछले साल टैक्स में की गई वृद्धि और उसके बाद राज्य सरकारों की ओर से वैट में वृद्धि को भी माना जा रहा है।
कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट
केंद्र सरकार ने पिछले साल मार्च से मई महीने के बीच में पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी में प्रति लीटर 13 रुपये और डीजल पर 16 रुपये बढ़ाए थे। उस दौरान कोरोना महामारी की शुरुआत हुई थी और कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई थी।
सरकार के इस कदम के बाद पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 65 फीसदी बढ़ गई थी और 19.98 रुपये से 32.98 रुपये पर पहुंच गई थी। उस दौरान डीजल पर 79 प्रतिशत की बढोतरी हुई थी। डीजल 15.83 रुपये से बढ़कर 28.35 रुपये पर पहुंच गया था।
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