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ऑक्सीजन की कमी: 'स्वास्थ्य' को हाशिये पर धकेलने की मिली है सजा

ऑक्सीजन की कमी: ‘स्वास्थ्य’ को हाशिये पर धकेलने की मिली है सजा

by Sneha Shukla

<पी शैली ="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में पिछले 24 घंटे में गंभीर रूप से बीमार 25 मरीजों की मौत के लिए आपको कसूरवार समझा जाए- केंद्र सरकार को, दिल्ली सरकार को या फिर देश के उन सभी राजनीतिक दलों को जिन्होंने स्वास्थ्य को कभी अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया न तो बनाया और न ही बनने दिया। मजहब व जाति के सियासी मुद्दों ने सेहत और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण व बुनियादी मसलों को इस कदर हाशिये पर धकेल दिया कि आज उसका खामियाजा पूरा देश भुगत रहा है। किसी को सजा से कम है क्या। p शैली ="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> जिस देश की राजधानी के तमाम अस्पतालों में ऑक्सिजन की कमी हो जाती है और उसके कारण लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ती है, वहाँ छोटे शहरों-कस्बों की क्या हालत होगी, यह सोचकर ही रूह कांप उठती है.हालांकि और nbsp; गंगाराम अस्पताल की घटना के पीछे की संभावित वजह ऑक्सीजन की कमी बताई जा रही है। लेकिन अस्पताल के चेयरमैन डॉ। डीएस राणा ने इस बात को नकार दिया है कि ऑक्सीजन की कमी की वजह से मरीजों की मौत हुई है। उन्होंने कहा कि आईसीयू में पहले ऑक्सीजन की कमी कम हो गई थी, उस दौरान हम लोगों ने ट्वीट तरह से ऑक्सीजन दी थी।उनके अपने तर्क हो सकते हैं लेकिन हक़ीक़त ये कि वे उन 25 लोगों की ज़िंदगी नहीं बचा पाएंगे जो ऑक्सीजन की ज़रूरत थी।

बड़ा सवाल और कड़वा सच तो यह है कि कोरोना की दूसरी लहर से सामना की तैयारी और व्यापक इंतजाम & nbsp; समय रहते क्यों नहीं किया गया? सरकार के नीति-निर्माता न तो जंगलों में थे और न ही हिमालय की चोटी पर बैठे तपस्या ही कर रहे थे, कि जहाँ से उन्हें यह पता ही नहीं लग गया कि दुनिया के तमाम देश दूसरी लहर से जंग लड़ रहे हैं और यह भारत में। बहुत जल्द हीॉक दे सकता है।सच तो यह है कि पहली लहर के कमजोर पड़ जाने के बाद पूरे देश में जीत और जश्न का ऐसा माहौल बना दिया गया, मानो हमने कोरोना पर जंग जीत ली ।इसके लिए अगर लोगों की लापरवाही को। भी दोषी ठहराया जा रहा है, तो उसके लिए भी सरकार और राजनीतिक दल ही कसूरवार हैं जिन्होंने लोगों को इस माहौल के लिए प्रेरित किया।

पूरे देश में पहले दवाई, फिर वेक्सीन और अब ऑक्सिजन की किल्लत का हाहकार मचने के बाद ही आखिर सरकार को यह अक्षमता जहाँ से मिलती है कि अब सेना की मदद लेकर इस संकट को संभाला जाए ।आज से पचास महीने पहले ही यानी 18 मार्च को के आसपास ही कोरोना के वायरस ने यह बताना शुरू कर दिया था कि उसने अपना दूसरा हमला शुरू कर दिया है, जो पहले से ज्यादा ताकतवर होगा। ऐसी महामारी से निपटने का अनुभव रखने वाले विशेषज्ञों से सरकार अगर उसी वक़्त सलाह लेती है, तो वे अन्य देशों की हालत देखकर यही मशविरा देते हैं कि युद्ध जैसे हालात बन रहे हैं, लिहाज तुरंत सेना को इसमें शामिल कर लिया जाए, तो उस स्थिति में बेकाबू होने / सफलतापूर्वक संभव हो रहा है।

राजनीति व समाजशास्त्र को गहराई से समझने वाले कहते हैं कि पिछले कई दशकों में सरकारों के काम करने का ढर्रा कुछ ऐसा हो गया है कि वे बड़ी आपदा के वक़्त भी अक्सर देर से ही जागती हैं और यही इस विपदा में भी देखने को मिला है। .सरकार अब वायु सेना की मदद से ऑक्सिजन भी एयर लिफ्ट करवा रही है और थल सेना के जरिये नए को विभाजित अस्पताल भी खोल रहे हैं ।ऐसा भी इसलिए करना पड़ा क्योंकि जब देश के विभिन्न हिस्सों से ऑक्सिजन की लूटपाट की घटनाओं में आने लगीं। <। / p>

प्रधानमंत्री के साथ आज हुई मुख्य सचिवों की बैठक में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का यह सुझाव महत्वपूर्ण है कि "देश के सभी ऑक्सिजन प्लांट सेना के हवाले कर देना चाहिए और इन प्लांटों से निकलने वाले हर टैंकर को सेना की एक गाड़ी एस्कॉर्ट और nbsp; संबंधित अस्पताल तक पहुंच गया।" इस सुझाव पर अमल करने का असर यह होगा कि न तो कोई लूट की घटना होगी, न ऑक्सिजन देने में भेदभाव होगा और सबसे बड़ी बात की वक़्त की पाबंदी होगी, जो इस समय हर अस्पताल की पहली ज़रूरत है।लेकिन इसके लिए दलगत राजनीति ऊपर उठने की हिम्मत तो दिखानी होगी।

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