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2019 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का जादू केरल के लोगों के सिर इस कदर चढ़ गया कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ ने राज्य की 20 में से 19 सीटों पर जीत हासिल की। केरल की वायनाड लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले राहुल गांधी ने भी रिकॉर्ड जीत दर्ज की लेकिन अब सवाल ये है कि 2 साल के बाद 2021 के विधानसभा चुनाव में भी क्या राहुल का ये करिश्मा बरकरार है? क्या कम से कम उनकी लोकसभा सीट वायनाड के लोग कांग्रेस गठबंधन को चुनेंगे?
टूरिस्ट हब वायनाड इन दिनों पॉलिटिकल हेलस्पॉट बन गया है। 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहते हुए राहुल गांधी ने इस सीट से शानदार जीत दर्ज की थी, राहुल गांधी के यहां से चुनाव लड़ने का असर ऐसा था कि पूरे केरल के लोगों को लगा कि वे यूपीए के जीत की स्तिथि हैं: वे पीएम पद के दावेदार हो सकते हैं। इसलिए पूरे राज्य की जनता ने कांग्रेस गठबंधन का साथ दिया और यूडीएफ ने 20 में से 19 लोकसभा सीटों पर एक जीत दर्ज की।
केरल में हर पांच साल में सरकार बदलने का ट्रेंड टूटेगा?
लेफ्ट एलडीएफ के प्रत्याशी श्रेयम्स कुमार जो कि राज्य सभा सांसद भी हैं उनका कहना है कि लेफ्ट सरकार ने राज्य में अच्छा काम किया है। बाढ़, तूफान, निपाह, कोरोना के लोगों के दौरान अपनी सेवा पहुंचाई। वहीं लेफ्ट का यह भी कहना है कि भले ही राहुल गांधी यहां से सांसद हों लेकिन जनता को यहां की जरूरत है। इसीलिए केरल में हर पांच साल में सरकार बदलने वाला ट्रेंड टूटने जा रहा है।
वहीं यूडीएफ का कहना है कि राहुल गांधी का जादू अब भी बरकरार है। यहाँ पर ये बताना भी आवश्यक है कि LDF और UDF के अलावा भाजपा भी यहाँ बहुत मेहनत कर रही है। बीजेपी भी यहां अपनी जीत का भरोसा जता रही है।
इन तीन जिलों से बीजेपी का जीतना मुश्किल है
तीन जिलों (वायनाड, मलप्पुरम, कोलिकोड) में फैले वायनाड लोकसभा सीट की बात करें तो यहां विधानसभा की 7 सीटें गिरती हैं। पिछले चुनावों में इन 7 सीटों में से 4 पर LDF की जीत हुई जबकि बाकी 3 सीटों पर UDF ने विजय पताका लहराया था। यहां हिंदू आबादी तिलारीबन 41 फीसदी, मुस्लिम आबादी तिलारीबन 45 फीसदी और ईसाई आबादी तिलारीबन 13 फीसदी है। हिंदू वोटों को अपने पाले में करने के लिए भाजपा की कोशिश भी जारी है और पिछले चुनावों के नतीजों पर गौर करें तो धीरे धीरे भाजपा का वोट प्रतिशत भी बढ़ता जा रहा है लेकिन क्या इस बार भाजपा यहां से कोई सीट जीत पाएगी ये मुश्किल दिख रहे हैं है।
दूसरी ओर क्या राहुल गांधी के यहां से सांसद बनने के बाद इस बार के विधानसभा चुनावों में ये सादियां यूडीएफ की झोली में होंगी? खैर हमारी ग्राउंड रिपोर्ट कुछ और केवल इशारा करती है। यहां के लोगों में ज्यादातर एलडीएफ के साथ दिखाई दिए। हमारी बात यहाँ के मानन्दवाडी और कलपेट्टा विधानसभा सीट के कुछ वोटर्स से हुई कि आखिर व्हका पलड़ा भारी है। हर कोई एलडीएफ की सरकार बनने की ओर जोर देता दिखा।
वायनाड की ये 7 विधानसभा की बैठक कांग्रेस के लिए साख की लड़ाई है, लेकिन लोगों से बातचीत से ये बिल्कुल साफ है कि विधानसभा चुनावों में मुद्दे अलग हैं। जमीन पर ये साफ दिखाई दे रहा है कि जो अवसर राहुल गांधी ने यहां पार्टी को बनाकर दिया स्थानीय और प्रदेश नेताओं की ताकत गुटबाजी और अंसतोष के चलते वे मौका कांग्रेस के हाथों से फिसल रहा है और एलडीएफ की राह आसान हो रही है।
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