<पी शैली ="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> मुंबई: देश में कोरोनावायरस के चेतन मामलों की संख्या में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है। देश में अब एक दिन में 2 लाख से ज्यादा कोरोनावायरस के मरीजों की पुष्टि हो रही है। इस बीच भारत की सबसे पुरानी सरकारी अस्पताल में से एक हाफकिन इंस्टीट्यूट को केंद्र सरकार ने कोविक्सीन बनाने के लिए हरी झंडी दे दी है।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री सीएम कोटव ठाकरे ने पीएम नरेंद्र मोदी से मंजूरी की गुहार लगाई थी। हाफकिन इंस्टीट्यूट इसके पहले प्लेग, कॉलरा और पोलियो जैसी बीमारी को नियंत्रण में लाने के लिए दवा बनाया गया है। भारत की सबसे पुरानी सरकारी अस्पताल में से एक हाफकिन इंस्टीट्यूट अब कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बड़ा योगदान देने जा रहा है। केंद्र सरकार ने हाफकिन इंस्टीट्यूट को कोविक्सीन बनाने की मंजूरी दे दी है।
दरअसल, हैदराबाद की भारत बायोटेक की कोविक्सीन का टेक्नोलॉजी ट्रांसफर कर हाफकीन इंस्टीट्यूट वैक्सीन तैयार करेगा। मुंबई के परेल स्थित हाफकिन इंस्टीट्यूट में 154 करोड़ रुपये की लागत से वैक्सीन उत्पादन के लिए नया प्लांट तैयार किया जाएगा। जानकारी के मुताबिक साल में 130 करोड़ वैक्सीन की खुराक बनाने की क्षमता इस इंस्टीट्यूट में होगी।
पहले भी बनाया गया है दवा
बता दें कि किसी वायरस की रोकथाम में योगदान देने में हाफकिन का यह कोई पहला योगदान नहीं है। कई साल पहले जब देश में प्लेग की बीमारी ने सबको हैरान और परेशान कर दिया था तब इसी हाफकिन इंस्टीट्यूट की बनाई दवा ने इस भयंकर बीमारी से लोगों को निजात दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। दवाइयों के संशोधन से लेकर वैक्सीन बनाने के काम में इंस्टीट्यूट का लंबा अनुभव रहा है। & nbsp;
="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> वहीं हाफकिन की इमारत में एक समय राजभवन हुआ करता था। जहां मुंबई के गवर्नर का निवास था। 1899 में मुंबई के गवर्नर सेंदहर्ट ने यह स्थान डॉ व्लादेमार हाफकिन & nbsp; को प्लेग पर संशोधन के लिए दिया। जिसके बाद हाफकिन ने यहां पर प्लेग की वैक्सीन बनाने का काम शुरू किया। यूक्रेन में जन्मे व्लादेमार हाफकिन 1893 में भारत आए थे। हाफकिन इंस्टीट्यूट में तैयार की गई वैक्सीने ने प्लेग बीमारी से लाखों लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
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