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क्या कोरोना वैक्सीन के राष्ट्रीयकरण से होगा फायदा ? जानें देश में टीकाकरण को लेकर मौजूदा व्यवस्था कैसी है

क्या कोरोना वैक्सीन के राष्ट्रीयकरण से होगा फायदा ? जानें देश में टीकाकरण को लेकर मौजूदा व्यवस्था कैसी है

by Sneha Shukla

नई दिल्ली: कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों और टीकों की ज़रूरत के बीच वैक्सीन राष्ट्रीयकरण की मांग भले ही उठाई जा रही हो, लेकिन इसकी व्यवहारिक स्थिति से निपटने में कोई बड़ा योगदान होगा यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है।

इसे समझने के लिए ज़रा वैक्सीन को लेकर मौजूदा व्यवस्था समझती है। व्यवहारिक तौर पर कोरोना के टीके अभी भी सरकार के नियंत्रण में हैं। यानी एक तरीके से राष्ट्रीयकृत ही हैं। इसे सिलसिलेवार तरीके से ज़रा समझिए।

देश में इस समय धारणा कोविशील्ड और कोविक्सीन टीकों का उत्पादन भले ही क्रमशः सीरम इस्टीट्यूट और भारत बायोटेक जैसी निजी कंपनियों द्वारा कर रहे हों, लेकिन भारत की केंद्र सरकार ही देश के भीतर इसकी सबसे बड़ी और एकमात्र खरीददार है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ही टीकों की खरीद कर रहा है।

तकनीकी तौर पर स्वास्थ्य भले ही राज्य का विषय हो, लेकिन राज्य सरकारों को भी अपने स्तर पर टीकों की सीधी खरीद करने की अभी अनुमति नहीं है। केंद्र सरकार केवल राज्यों की आबादी और टीकाकरण की अप और आवश्यकता के अनुसार टीकों का कोटा आवंटित करती है। इतना ही नहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय वैक्सीन निर्माता कंपनियों के उत्पादन और अपनी संभावित जरूरत के अनुसार बफर स्टॉक का भी नियंत्रण करता है।

इसके अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय और गृह मंत्रालय एपिडेमिक एक्ट 1897, राष्ट्रीय आपदा कानून 2005, ड्रग्स और कॉस्मेटिक एक्ट 1940 और फार्मा एक्ट के तहत ज़रूरी दवाओं और अन्य मेडिकल उपकरणों का नियत्रंन व प्रबंधन कर रहे हैं।

घरेलू खरीद ही नहीं, विदेशों में हो रही एक्स भी बिना सरकारी मंजूरी के नहीं हो रही है। केंद्रीय मंत्रालय के तहत काम करने वाले साथ DGFT यानि विदेश व्यापार महानिदेशालय के माध्यम से वैक्सीन एक्स का नियंत्रण सरकार करती है। इसके अलावा वैक्सीन मैत्री जैसा रेमदेसीवीर या पहले हैड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा के संदर्भ में किया गया था।

वैक्सीन मैत्री तो केवल केंद्र सरकार के तहत काम करने वाले विदेश मंत्रालय की देखरेख में चलने वाला कार्यक्रम है।

किसी दवा या टीके के राष्ट्रीयकरण का कोई पिछला उदाहरण तो नहीं है। लेकिन आपदा प्रबंधन और अन्य स्थितियों से निपटने के लिए बनाए गए उपरोक्त कानूनों में सरकार के पास असीम शक्तियां हैं। जिनके सहारे वे चाहे तो सीरम संस्थान और भारत बायोटेक जैसी वैक्सीन निर्माता कंपनियों को अपने नियंत्रण में ले सकते हैं। हालांकि इससे व्यवहारिक स्थिति पर बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि अभी भी भारत में टीके जनता को किस कीमत पर मिलेंगे, देश में कितनी टीकों की जरूरत है और उस अनुपात में उत्पादन व बफर स्टॉक है या नहीं, इसका निर्धारण केंद्र सरकार ही कर रही है।

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