कोरोना से ठीक हो चुके लोगों में अगले छह महीने तक मौत का खतरा 65 प्रति अधिक रहता है। इनमें वह लोग भी शामिल हैं जिन्हें कोराना से अस्थिर होने पर भर्ती कराने की जरूरत नहीं पड़ती। यानी कोरोना से उबर जाने के बाद भी मौत का खतरा टलता नहीं है। यह जानकारी को विभाजित -19 के बारे में अब तक के सबसे व्यापक अध्ययन में सामने आई है।
नेचर जर्नल में गुरुवार को प्रकाशित शोध रिपोर्ट में अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि आने वाले सालों में दुनिया की आबादी पर इस बीमारी से बड़ी बीमारी पड़ रही है।]अध्ययन के वरिष्ठ लेखक और मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर जियाद अल-अली कहते हैं कि कोरोना संक्रमण का पता लगने के छह महीने के अंदर मौत का जोखिम कम नहीं होता है भले ही कोरोनाइरस से मामूली रूप से प्रभावित हुए हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि संक्रमण का पता चलने के 30 दिनों के बाद कोरोना से ठीक हुए लोगों में अगले छह महीने तक आम आबादी के मुकाबले मौत का जोखिम 60 प्रतिशत तक ज्यादा होता है। छह महीने की सीमा तक कोरोना के मामूली अंतर से ठीक हुआ प्रति 1000 लोगों में मौत के आठ मामले अधिक मिले। कोरोना के ऐसे रोगी जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की ज़रूरत पड़ती है, उनमें ठीक होने के बाद प्रति 1000 लोगों पर 29 मौतें ऐसी हुईं।
वायरस एक परेशानी कई:
अमेरिका में वाशिंगटन न्यूजडायल में स्कूल ऑफ मेडिसिन के अध्ययनकर्ताओं ने कोरोना से संबद्ध विभिन्न बीमारियों की एक सूची उपलब्ध कराई है जो महावीर के कारण लंबे समय में होने वाले परेशानियों से संबंधित है। यह वायरस शरीर में परिवर्तन के रूप में उत्पन्न समस्याओं से रहेगा।
हर अंग पर असर:
वैज्ञानिकों ने पुष्टि की कि कोरोना शुरू में भले ही सांस की बीमारी से जुड़े एक वायरस के तौर पर सामने आया है। लेकिन यह दीर्घकाल में शरीर के लगभग हर अंग-तंत्र को प्रभावित कर सकता है।
साढ़े 50 लाख से अधिकिटेन्स पर अध्ययन:
इस अध्ययन में 87000 कोरोना संवेदनात्मक रूप से हानिकारक रोगियों के अलावा 50 लाख उन रोगियों को शामिल किया गया जो कोरोना से उबर चुके हैं।) इस दौरान कोरोना से ठीक हुए रोगियों में इसके विभिन्न प्रकार सामने आए। इन प्रभावों में सांस की समस्या, अनियमित दिल की धड़कन, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं और बालों का गिरना शामिल है।
।
Homepage | Click Hear |