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क्या कोरोनावायरस को मां देनेवाले लोग को विभाजित -19 की बीमारी से दोबारा बीमार हो सकते हैं, अगर ऐसा होता है तो यह एक गंभीर बीमारी है? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए विशेषज्ञ महामारी के समय से जुटे हुए हैं। अब एक नए शोध में बताया गया है कि कोविड -19 को शिकस्त दे चुके बुजुर्ग लोगों को ज्यादा खतरा होता है।
कोरोनावायरस का खतरा ज्यादा होगा?
कोरोनावायरस से उबर्वर्ड बूढ़े लोग नहीं मान सकते कि उन्हें दूसरे हमले से सुरक्षा मिल गई है। डेनमार्क में किए गए रिसर्च से पता चला कि 65 साल से कम उम्र को विभाजित -19 से ठीक हो चुके लोगों को कम से कम 6 महीने तक फिर से ट्रांसफर से 80 फीसद सुरक्षा मिलती है, लेकिन 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में सुरक्षा का फीसद। सिर्फ ४ होता है।
मेडिकल पत्रिका लैंसेट में प्रकाशित शोध में बताया गया कि इसका मतलब है बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए उपाय करना जरूरी है क्योंकि उन्हें को विभाजित -19 से मौत का खतरा भी ज्यादा होता है। स्टेटेन्स सीरम इंस्टीट्यू के शोधकर्ता स्टीन एथिलबर्ग ने कहा, “हमारे शोध की पुष्टि करता है कि युवा, सेहतमंद लोगों में को विभाजित -19 से पुनः संक्रमण दुर्लभ है, लेकिन बुजुर्गों को वायरस की चपेट में दोबारा आने का जोखिम अधिक है।”
बुजुर्गों की सुरक्षा को जरूरी बताया गया
उन्होंने ये भी बताया कि बुजुर्गों में बीमारी के गंभीर लक्षण और मौत का ज्यादा खतरा है, इसलिए स्पष्ट है कि महामारी के दौरान बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए नीतियों को लागू किया जाना चाहिए। डेनमार्क में टेस्टिंग का कार्यक्रम बहुत व्यापक है, हर किसी के लिए पीसीआर टेस्ट की सुविधा मुहैया है, चाहे लक्षण प्रकट हों या नहीं। 2020 में 40 लाख या डेनमार्क की दो आबादी के कोरोना की जांच हुई।
शोधकर्ताओं ने मार्च से मई 2020 के बीच पहली लहर के दौरान कोरोना पॉजिटिव पाए गए लोगों के डेटा की तुलना सितंबर से दिसंबर के दौरान दूसरी लहर में टेस्ट से किया। उन्होंने 25 लाख लोगो के समूह में महामारी के दौरान दूसरे संक्रमण पर भी काम किया।
नतीजे से पता चला कि सामान्य रूप में मरीजों को एक बार बीमार होने के बाद दोबारा संक्रमण से सिर्फ 80 फीसद सुरक्षा मिलती है और ये घटकर 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को 47 फीसद रह जाती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे पता चलता है कि किन लोगों को टीकाकरण में प्राथमिकता दी जाने की जरूरत है।
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