70 और 80 के दशक की समानांतर फिल्मों में सुमधुर संगीत देने के लिए मशहूर रहे राष्ट्रीय वनराज भाटिया का 94 साल की उम्र में मुंबई के नेपियनसी रोड स्थित घर में निधन हो गया है। वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे और उन्होंने आज तक सुबह तकरीबन 8.30 बजे अंतिम सांस ली।
वनराज राज भाटिया पिछले कुछ सालों से आर्थिक संकट से भी जूझ रहे थे। ऐसे में गायको, रचनाकारों और संघ के नीतियों का पालन रखनेवाली भारतीय परफॉर्मिंग रिड्स सोसायटी (IPAreas) की & zwnj; ओर से भी उनकी आर्थिक मदद की गई थी। पिछले साल वनराज भाटिया के पुराने कैरटेकर सुजीत द्वारा लाखों का गबन कर फरार हो जाने की खबर भी एबीपी न्यूज़ ने विस्तार से प्रकाशित / प्रसारित की थी।
वनराज भाटिया ने इस दुनिया को अलविदा कहा है। >
संकट के समय में वनराज भाटिया के लिए आर्थिक मदद बढ़ानेवाले और नियमित रूप से उनसे संपर्क में रहनेवाले पवन झा ने एबीपी न्यूज़ को बताया, ‘पिछले लगभग डेढ़ महीने से वन भाटिया का चलना-फिर बंद सा हो। गया था और वे काफी कमजोर थे। पिछले कुछ दिनों से वो ठीक से खाना-पी भी नहीं खा पा रहे थे। कोरोना के चलते घर पर ही उनकी जांच करने के लिए डॉ की व्यवस्था करने की कोशिश भी नाकाम साबित हुई। ’
आरएसएस वनराज भाटिया ने 60 के दशक में कई प्रसिद्ध ऐड फिल्मों का संगीत देते हुए अपने संगीतमय करियर की। शुरुआत थी। 1974 में रिलीज़ हुई श्याम बेनेगल निर्देशित फ़िल्म ‘अंकुर’ की बतौर निर्देशक वनराज भाटिया की पहली फ़िल्म थी। इसके बाद उन्होंने ‘मंथन’, ’36 चौरगीलेन ‘,’ निशांत ‘,’ भूमिका ‘,’ कलको ‘,’ जुनून ‘,’ मंडी ‘,’ हिप हॉप हुर्रे ‘,’ आघात ” मोहन जोशी फिल्म हो ” पिस्टनजी ‘ , ‘खामोश’, ‘जाने भी दो यारों’ जैसी तमाम फिल्मों में संगीत दिया था। इसके अलावा उन्हें कई फिल्मों में पार्श्व संगीत दिया गया था जिनमें ‘अजूबा’, ‘दामिनी’ और ‘परदेस’ जैसी भूमिकाओं की फिल्मों का भी शुमार रहा। इसके अलावा उन्होंने कई फिल्मों में गाने भी गाये थे जिनमें से ज्यादातर उनके संगीतबद्ध किए गए गीत थे।
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