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एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली के आस-पास 12 पावर प्लांट से फैलने वाले प्रदूषणों के कारण हर साल देश में 2830 लोगों की मौत हो जाती है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि दिल्ली एनसीआर के 300 किलोमीटर के रेडियस में लगे 12 पावर प्लांट से निकले पॉल्यूशन के कारण दिल्ली में हर साल 218 लोगों की मौत हो जाती है जबकि एनसीआर के जिले। में इसके कारण 682 लोगों की मृत्यु हो जाती है। हेल्थ एंड इकोनोमिक इंफेक्ट ऑफ अनबेटेड कोल पावर जेनरेशन इन दिल्ली-एनसीआर की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। इस रिपोर्ट को वेबीनार में रिलीज किया गया है।
4700 टास्क डे बच जाता है
सीआरईए के विशेषज्ञ सुनील दहिया ने बताया कि दिल्ली के आसपास 300 किलोमीटर के दायरे में स्थित इन प्लांटों से निकले विभिन्न तरह के प्रदूषकों से बड़े पैमाने पर संरक्षण होता है जिसमें कई तरह के अन्य कारक भी शामिल हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि इन श्रेणियों से निकले प्रदूषक पर्यावरण को प्रभावित करते हैं और पार्टिकुलेट मैटर का खिंचावव आबादी तक पहुंच देते हैं जिसके कारण कई तरह की बीमारियों का सामना लोगों को करना पड़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक यदि बिजली की आपूर्ति 2015 के प्रावधानों के मानक का पालन किया जाता है तो कई लोगों की जानें नहीं जाती हैं। इन मामलों से निकले प्रदूषण के कारण 32 लाख कार्य दिवस को सफलतापूर्वक किया जा सकता था क्योंकि इससे 2018 में लगभग 4700 समय पूर्व जन्म, 7700 अस्थमा रोगियों को शिशु कक्ष में जाने और 3000 सीओपीडी मामले को रोका जा सकता था।
13 मौतें और 19 करोड़ का अतिरिक्त खर्च का भार रोजाना
रिपोर्ट के मुताबिक ये बिजली संयंत्र हैं। 2018 से ये पावर प्लांट बिना इस तकनीकी से चल रहे हैं। ये पावर प्लांट से निकले प्रदूषण का विश्लेषण करते हुए पाया गया कि गैस आधारित ये पावर प्लांट दिल्ली-एनसीआर के 300 किलोमीटर के दायरे में आते हैं। इससे देश को 6700 करोड़ का अतिरिक्त भार उठाना पड़ता है। इन पावर प्लांट के कारण अकेले दिल्ली को 292 करोड़ का अतिरिक्त भार सहन करना पड़ता है। रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात कही गई है कि इन 12 पावर प्लांटों ने अकेले 2018 में 2111 किलोग्राम मर्करी वायुमंडल में छोड़ा जो बेहद खतरनाक स्थिति है।
देश के हर हिस्से का हाल
सीआरईए की रिपोर्ट के मुताबिक तेल आधारित पावर प्लांट सिर्फ दिल्ली एनसीआर तक ही सीमित नहीं है जिसके कारण दिल्ली एनसीआर को स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति का खामियाजा सहनाना पड़ रहा है बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी कमोबेश यही स्थिति है। अध्ययन में पाया गया है कि इन स्थानों से निकले एसओ 2 और एनओ 2 का प्रभाव केवल 300 किलोमीटर दूर तक ही सीमित नहीं रहता है बल्कि हजारों किलोमीटर दूर यह हवा के साथ तैरता रहता है और धूलकण और अन्य प्रदोषकों के साथ आबादी में घुलकर जाता है जिसके कारण कई तरह से करना बीमारियों से लोगों को सामना करना पड़ता है। अगर एसओ 2 और एनओ 2 को नियंत्रित कर लिया जाए तो हजारों जिदंगी और पैसों की बर्बादी को रोका जा सकता है।
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