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प्रोटोकॉल की धज्जियां: ओपीडी, कागजों की पर्ची पर लिखीं जा रहीं कोरोना की दुष्प्रभावी दवाएं

by Sneha Shukla

अब देश के कई हिस्सों में कोरोनावायरस के उपचार को लेकर गलत प्रैक्टिस शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा और एनसीआर के कई शहरों में कोरोना उपचार प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ रही हैं। यहां ओपीडी या फिर सादा कागज पर ही डॉ। रेमडेसिवर, टोसिलिजामाब, इटोलीजुमाब, फेविफ्लू जैसी प्रभावशाली दवाओं को लाने की सलाह दे रहे हैं। उनके अलावा प्लॉट के लिए भी तीमारदारों को एक कागज पर लिख कर व्यवस्था करने की सलाह दी जा रही है। यह अब तक कई मामलों के सामने आने के बाद भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने भी चिंता व्यक्त की है।

आईसीएमआर के ही एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि कई शहर या फिर राज्यों में गलत प्रैक्टिस शुरू हो गई है। यह स्थिति निजी अस्पताल या छोटे ब्रांडों में ज्यादा गंभीर है जहां डॉ। विभाजित उपचार प्रोटोकॉल का कतई पालन नहीं कर रहे हैं। उन्होंने अपना एक अनुभव साझा करते हुए बताया कि दिल्ली के हिंदूराव अस्पताल का एक ओपीडी कार्ड उन्हें व्हाट्सएप पर मिला, जिसे उनके एक ही दोस्त ने भेजा था। ताकि रेमदेसीवीर इंजेक्शन की कोई व्यवस्था नहीं हो सके। इस ओपीडी कार्ड को देख उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ। एक मनोयोग विभाग का जूनियर रेजीडेंट कार्ड पर साइन और मुहर लगाकर मरीज को फेविफ्लू, रेमडेसिविर व टोसिलिजमाब दवा लेने की सलाह दे रहा है। उसी कार्ड को लेकर तीमारदार पूरी दिल्ली में इन दवाओं के लिए चक्कर लगा रहे थे।

इसी तरह का एक मामला बिहार की राजधानी पटना में सामने आया है जहां एक ओपीडी की पर्ची पर मरीज को टोसिलिजमब दवा लेने की सलाह दी गई है। यह स्थिति तब है जब उक्त कार्ड पर रोगी की आरटी पीसीआर, एचआर स्ट्रिंग, ऑक्सीजन और बीपी इत्यादि की कोई जानकारी नहीं है। न ही मरीज का सीआरएम नंबर दिया गया है जिसे अस्पताल में जारी किया गया था।

उनके अलावा गाजियाबाद के कई अस्पतालों में हालात ऐसे हैं कि तीमारदारों को रेमदेसीवीर और टोसिलिजमब दवा लाने के लिए कहा जा रहा है। जबकि यह दवाई अस्पताल में ही मिल सकती हैं साथ ही कोरोना के उपचार प्रोटोकॉल में इनके अलावा और विकल्प भी हैं।

दवा नहीं है तो धक्के खाने की जरूरत नहीं है
आईसीएमआर के अनुसार, कोरोना उपचार प्रोटोकॉल को काफी अध्ययन के बाद तैयार किया गया है। अगर कोई रोगी गंभीर स्थिति में है और उसे रेमडेसिविर या फिर टोसिलिजुम्ब देनी है लेकिन यह उपलब्ध नहीं है तो इससे कोई असर नहीं पड़ने वाला है। इसके लिए लोगों को धक्के खाने की जरूरत नहीं है। प्रोटोकॉल में यह भी लिखा है कि अगर यह दवा उपलब्ध नहीं है तो इनकी जगह पर अंडे, फेविफ्लू, आइवरमेक्टिन इत्यादि दवाओं को दिया जा सकता है।

एक भी दवा जान बचाने वाली नहीं
दिल्ली एम्स के डॉ। अमरिंदर ने बताया कि लोग घबराकर धक्के खा रहे हैं। उन्हें लगता है कि डॉ ने जो दवा लिखी है उसी से उनका मरीज बच जाएगा। इसलिए कई लोग नकली ओपीडी कार्ड भी बनवा रहे हैं। सावधान रहना चाहिए। अब तक कोई भी दवा ऐसे सामने नहीं आई है जिसके सेवन से किसी कोरोना गंभीर रोगी की जान बचाने के सबूत मिले हों। हालांकि प्रोटोकॉल में दी गई दवाओं का कुछ असर होता है लेकिन यह कहता है कि रेमडेसिविर या टोसिलिजमाब नहीं मिला तो मरीज की जान नहीं बचाई जा सकती है, यह पूूरी तरह से गलत है। इस तरह की प्रैक्टिस करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।

कालाबाजारी रोकने के लिए टोसिलिजामाब सरकार मरीजों को करेगी
कोरोना महामारी के बीच ऑक्सीजन से लेकर दवाओं तक तक की कालाबाजारी का खुलासा होने के बाद केंद्र सरकार ने संज्ञान लिया है। रेमडेसिविर के बाद सरकार ने टोसिलिजुमाब को लेकर सख्त आदेश जारी किए हैं। वहीं ऑक्सीमीटर, कालपोल, मेफटाल और एचसीक्व को लेकर भी बाजार में निगरानी बढ़ाने के लिए कहा गया है। सरकार ने दो अलग-अलग आदेशों में कालाबाजारी की शिकायतों पर तत्काल संज्ञान लेने के आदेश भी दिए हैं। दरअसल अमर उजाला ने 28 अप्रैल के अंक में खुलासा किया था कि देश में ऑक्सीजन कन्सेंट्रेटर, ऑक्सीमीटर, कालपोल, मेफटाल, टोसिलिजुमाब, रेमडेसिवर और एचसीक्व को लेकर कालाधनारी बढ़ गई है।

इसके अलावा टोसिलिजुमाब इंजेक्शन को लेकर केंद्रीय अस्पतालों में गलत प्रैक्टिस का खुलासा करते हुए कोविड प्रोटोकॉल का सरेआम उल्लंघन करने की जानकारी भी दी गई थी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के निदेशक राजीव वाधवान ने बताया कि कोविड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल में टोसिलिजुमाब के अलावा भी अन्य वैकल्पिक दवाएं दी गई हैं लेकिन अस्पताल खासतौर पर निजी ज्यादातर लोगों को टोसिलिजामाब ही लाने की सलाह दे रहे हैं। इसीलिए सरकार ने फैसला लिया है कि अब यह इंजेक्शन सरकारी और निजी अस्पतालों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। इसका वितरण पर सरकार का पूरा नियंत्रण रहेगा।

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