में मौसम के लिहाज से यह सही समय पर अपडेट होने के लिए उचित है। केजीएमयू के माइक्रो बैट एटी टेस्ट की शुद्धता में तापमान है। इससे पता चलेगा कि फंगस पर कौन सी दवा कितनी कारगर है।
KGMU का माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने कोरोना की दस्तक के बाद 2020 में प्रदेश में सबसे पहले कोविड टेस्टिंग शुरू की थी। अब यही विभाग इस फंगस से लड़ाई में भी अग्रणी भूमिका निभा सकता है। विभाग के प्रोफेसर डॉ। प्रशांत गुप्ता ने इस फंगस को लेकर एबीपी गंगा से कई महत्वपूर्ण बदलाव साझा किए।
उन्होंने कहा कि मूल रूप से ये ब्लैक फंगस नहीं है। सँटीकोरमाइकेपरफ़ेक्ट फंगस जो सतह पर होटा है और अधिक की गणना करता है।. जैसे खराब फल, चीनी या अन्य सतह होते हैं। ये फंगस. विशेष रूप से जो स्टेरॉइड्स इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि उनके इस्तेमाल से शुगर लेवल बढ़ जाता है। ये फंगस की से एक्सेस कर ब्रायन जा सकता है और इसमें शामिल हैं।
उन्होंने बताया, यह फंगस लंग्स, किडनी या शरीर के किसी भी अंग में इन्फेक्शन कर सकता है। अभी जो मामला आ रहा है उनमें आँखों में सूजन, नाक से खून निकलना, दिखना बंद होना जैसे सिम्पटम है। सीवियर इन्फेक्शन होने पर बेहोशी आ सकती है।
डॉ। प्रशांत का कहना है, इस फंगस का पता लगाने में नेजल स्वाब के बजाए बायोप्सी सैंपल ज्यादा प्रभावी है। ये फंगस कई बार सिर्फ 2 से 3 दिन में पनप जाती है और मरीज को समस्या होती है। अभी इसके लिए 3 दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन अब लैब में कुछ एन्टी फंगल टेस्टिंग कर रहे हैं जिससे पता चलेगा कौन सी दवा कितनी कारगर है।
डॉ। पुर्नस्थापना की स्थापना की गई कार्य उत्पादकता में वृद्धि हुई है। इसके लिए कई अस्पताल और मेडिकल इंस्टीट्यूशंस से संपर्क किया गया है कि उनके यहाँ ऐसा मामला आये तो सैंपलॉय।
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