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नई दिल्ली: फरवरी 2020 के अपने फैसले के बावजूद सेना में कई महिला अधिकारियों को फिट के आधार पर स्थायी कमीशन न दिए जाने को सुप्रीम कोर्ट ने गलत बताया है। कोर्ट ने कहा है कि इस बारे में दिल्ली हाई कोर्ट का पहला फैसला 2010 में आया था। सेना ने उसे लागू करने की बजाय सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने भी दिया वही फैसला अब मूल निर्णय के 10 साल पारित होने के बाद फिट और शरीर के आकार के आधार पर महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन न देना सही नहीं कहा जा सकता है।
मुकदमे के दौरान मुकदमे की दौरान आलोचना
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एम आर शाह की बेंच ने इस बात की आलोचना की कि महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने में उनके पुराने एसीआर और शारीरिक फिट के शेप -1 क्राइटेरिया को आधार बनाया जा रहा है। जजों ने कहा कि 45 से 50 साल की महिला अधिकारियों के फिटक का पैमाना 25 साल के पुरुष अधिकारियों के बराबर रखा गया है। यह भेदभाव है।
महिलाओं को बराबर अवसर दिए बिना कोई रास्ता नहीं निकल सकता- सुप्रीम कोर्ट
137 पृष्ठों के फैसले में कोर्ट ने कहा कि कई ऐसी महिला अधिकारियों को भी परमानेंट कमीशन नहीं दिया जा रहा है, जिन्होंने अतीत में अपनी सेवा से सेना और देश के लिए सम्मान अर्जित किया है। महिलाओं के साथ हर जगह होने वाले भेदभाव पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा, “हमारी सामाजिक व्यवस्था पुरुषों ने पुरुषों के लिए बनाई है। इसमें समानता की बात झूठी है। हमें बदलाव करना होगा। महिलाओं को बराबर अवसर दिए बिना कोई रास्ता नहीं निकल सकता है। “
कोर्ट ने सेना से 1 महीने में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने पर विचार करने और 2 महीने में अंतिम निर्णय लेने के लिए कहा है। इस फैसले से लगभग 150 महिला अधिकारियों को इससे लाभ होने की उम्मीद है। कोर्ट ने साफ किया है कि वह मेडिकल फिट के पैमाने को खारिज नहीं कर रहा है। सिर्फ इस विशेष केस में कुछ रियायत दी गई है।
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