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मुंबई: आरबीआई ने रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है। आरबीआई गवर्नर ने आज बताया कि रेपो रेट 4% और रिवर्स रेपो रेट 3.35% है। इसके साथ ही आरबीआई गवर्नर ने वर्ष 2021-22 के लिए 10.5% जीडीपी का अनुमान जताया है।
मौद्रिक नीति पेश करते हुए आरबीआई गवर्नर ने कहा, “कोरोना के बावजूद देश की आर्थिक स्थिति सुधर रही है। ल में उसी तरह से मामले बढ़े हैं, उसके साथ थोड़ी अनीश्चिचता बढ़ी है। लेकिन भारत चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार है। ” बताएं बता दें कि 5 फरवरी को हुई मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया था।
बाजार एक्सपर्ट की ओर से पहले ही इस बात के संकेत दिए गए थे। एक्सपर्ट्स का कहना था कि वृद्धि के कारण, सरकार के महंगाई लक्ष्य के दायरे को पूर्ववत बनाये रखने (दो प्रतिशत घटबढ के साथ चार प्रतिशत पर) और को विभाजित -19 संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति के मामले में नरम रुख अपनाते हैं। यथास्थिति मेये रख सकती है।
क्या होता है रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट आपको कहते हैं?
आरबीआई किस रेट पर कमर्शियल बैंकों और दूसरे बैंकों को लोन देता है उसे रेपो रेट कहा जाता है। रेपो रेट कम होने का मतलब है कि बैंक से मिलने वाले सभी तरह के लोन सस्ते हो जाएंगे। इससे आपकी जमा पर ब्याज दर में भी वृद्धि हो जाती है।
बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर जिस रेट्रो पर ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट (रिवर्स रेपो दर) कहते हैं। बैंकों के पास जो अतिरिक्त कैश होता है, उसे रिजर्व बैंक के पास जमा करा दिया जाता है। इस पर बैंकों को ब्याज भी मिलता है।
कैसे रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट का बैंकों के लोन पर असर पड़ रहा है?
रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट आपस में जुड़े हुए हैं। एक तरफ आरबीआई रिवर्स रेपो रेट कम करके बैंकों के पास ज्यादा पैसा छोड़ता है जिससे वह अधिक लोन दे पाएं। वहीं दूसरी ओर रेपो रेट कम करके बैंकों को सस्ती दरों पर कर्ज मुहैया कराने और जिसका फायदा बैंक अपने ग्राहकों को दे पाएं।
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