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Raaj Ki Baat: सितारों से चुनाव प्रचार- मैदान मारती दिख रही है बीजेपी तो 'हाथ का हाथ तंग'

Raaj Ki Baat: सितारों से चुनाव प्रचार- मैदान मारती दिख रही है बीजेपी तो ‘हाथ का हाथ तंग’

by Sneha Shukla

सत्ता और सियासी सितारों के समन्वय के बीच से ही एक राज की बात हम आपके लिए निकालकर लाए हैं। ये राज की बात भागों के चुनावी प्रबंधन से जुड़ी हुई है। सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने की कोशिश में लगे सियासी दलों ने अपने सितारों को चुनावी समर में उतार दिया है। वे सितारे जिनके चेहरे, व्यक्तित्व और जनाधार की नाव पर सवार होकर चुनावी वैतरणी पार की जाती है। खासतौर पर बात करें बीजेपी और कांग्रेस की तो दोनों राष्ट्रीय दलों ने शीर्ष तक पहुंचने के लिए एड़ी से भी जोर लगा रखा है।

राज की बात में हम आपको बताएंगे कि कैसे चुनावी मैदान में दोनों दलों ने स्टार कैंपेनर्स को उतारा है। सियासी सितारों के प्रचार का चुनाव परिणामों पर क्या असर होगा तो वह बताएगी लेकिन अभी जो उनकी पोज़शानिंग बीजेपी और कांग्रेस ने की है उसका वर्तमान में क्या असर हो रहा है वह आपको राज की बात में हम बताने जा रहे हैं।

बीजेपी की ओर से पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय अध्य्क्ष जेपी नड्डा प्रमुख चेहरे हैं तो वहीं कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने प्रमुख रूप से मोर्चा संभाल रखा है। जब बात स्टार प्रचारकों की संवेदक लाइन आती है तो अंतर साफ नजर आती है। जहां बीजेपी के पास स्मृति इरानी, ​​बी येदियुरप्पा, धर्मेंद्र प्रधान, निर्मला सीतारमण, योगी आदित्यनाथ, शिवराज सिह चौहान जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की फौज खड़ी है तो वहीं कांग्रेस के पास उन बड़े नेताओं का टोटा हो गया है जिनकी राष्ट्रीय छवि है और जिनके बारे में चुनावी मंचों पर मौजूद रहने से मतलब काफी बदल जाते हैं।

खासतौर से बीते दशकों से जो कांग्रेस की फर्स्ट लाइन के नेता जो रहे आज उनकी पहचान बागी या ‘ग्रुप- 23’ की हो गई है। ऐसे में गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, वीरप्पा मोइली, आनंद शर्मा जैसे दिग्गजों के बिना बीजेपी की तेज और सधी धारा के बीच कांग्रेस के पैरों के नीचे से सैंड्स के साथ खिसक रही है।

एक तरफ जहां बीजेपी के पास प्रांतीय, क्षेत्रीय, जातीय और हर तरह के समीकरण को प्रभावित करने वाले स्टार कैंपेनर्स की फौज खड़ी हुई है वहीं कांग्रेस का 5 राज्यों का प्लान राहुल-प्रियंका और स्थानीय दलों के साथ गठबंधन पर ही आधारित नजर रख रहा है। । और इतना ही नहीं जो पश्चिम बंगाल में सबसे बड़ा घमासान है वहां राहुल और प्रियंका नहीं पहुंचे। कांग्रेस के सियासी संघर्ष की कहानी असम तक ही सिमटती नजर आने लगी है।

ऐसे में राज की बात ये है कि पेट्रोल से लेकर आदमी तक की जिन बुनियादी जरूरतों को लेकर कांग्रेस एक बड़ी प्रहार बीजेपी पर कर सकती थी वो नहीं हो पा रही है। इसकी वजह साफ है। कारण ये कि जिन नेताओं ने सम्मति तक कांग्रेस को पहुंचाया उनमें से कुछ हाशिए पर हैं तो कुछ पार्टी से नाराज है। इसके साथ ही साथ संदेश यह भी जा रहा है कि जो पार्टी अभी अपनों को दुखने में अक्षम है, वह क्या बड़े मामलों को सत्ता में आकर दुख पाएगी।

कांग्रेस की यही कमजोरी बीजेपी के लिए वरदान बन रही है और सही होने से बचती है उसे पार्टी अपने राष्ट्रव्यापी छवि वाले चेहरों से सार्वजनिक करने में दम-खम से जुटी हुई है। चुनाव के परिणाम क्या होंगे ये जनता तय कर रही है लेकिन इतना तय है कि कांग्रेसजनवादी स्तर पर एक बड़े संकट से जूझ रही है और इसमें पार पारा लोहे के चने चबाने से कम नहीं है।

राज की बात: क्या सच में कम हो गया है वैक्सीन या वैक्सीनेश को लेकर हो रही है सियासत?

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