<पी शैली ="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> भारत शुरू से पुरुष प्रधान देश रहा है और यहां पर प्राचीन काल से शादी के बाद शादीहनों की विदाई की प्रथा चली आ रही है, लेकिन भारत में कई धर्म, जाति और समुदाय के लोग रहते हैं, जिनकी रेती रिवाज अलग अलग हैं, से लेकिन एक समानता सभी धर्म के लोगों में देखने को मिलती है और वह दुल्हन की विदाई है। सभी धर्मों में शादी के बाद दुल्हन की विदाई की जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में एक ऐसी जनजाति भी रहती है जहां दुल्हन नहीं बल्कि दूल्हे की विदाई होती है? जी हां हम बात कर रहे हैं, मेघालय में बसी खासी जनजाति की। ये एक मातृसत्तात्मक समाज है जहां पर दूल्हे की विदाई की प्रथा सदियों से चली आ रही है। दरअसल यहां माता-पिता की संपत्ति पर पहला अधिकार महिलाओं का होता है। साथ ही महिलाओं के अपनी पसंद के साथी के साथ शादी कर सकते हैं। इस समुदाय के लोग दहेज प्रथा के सख्त खिलाफ हैं। जानकारी के मुताबिक इस समुदाय में करीब 9 लाख लोग पाए जाते हैं जो मेघालय में बस गए हैं।
कहां कहां रहना हैं खासी समुदाय < मजबूत> के लोग
खासी समाज के लोग मेघालय के अलावा असम, मणिपुर और पश्चिम बंगाल में भी रहते हैं। जबकि पहले ये जाति म्यांमार में रहती थी। ये समुदाय झूम खेती करके अपनी आजीविका खेती करता है। वहीं इस समुदाय के लोगों को संगीत का काफी शौक होता है।
दो अन्य जातियाँ में भी होती है < मजबूत> है दूल्हे की विदाई
खासी जनजाति के अलावा मेघालय में दो और जनजातियां पाई जाती हैं, जहां पर दूल्हे की विदाई की प्रथा है, जो सर्फ और जयंतिया जाति हैं। यहां पर भी शादी के बाद दूल्हा अपनी पत्नी के घर पर रहता है। इसकी खास बात ये हैं कि यहां बेटी होने पर खूब खुशियां मनाई जाती हैं।
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