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AstraZeneca टीके से Bloot clots के आए कुछ संभावित मामले, ब्रिटेन में 30 साल से कम को लगेगी दूसरी वैक्सीन

UK में 30 साल से कम उम्र के लोगों को एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का टीका नहीं दिया जाएगा, जानें क्या है वजह

by Sneha Shukla

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ब्रिटेन में कोरोना वैक्सीन को लेने के बाद रेयर ब्लड क्लॉटिंग की वजह से 19 लोगों की मौत हो गई थी। इसे देखते हुए कोरोनोवायरस वैक्सीनेशन की सलाह देने वाली एक सरकारी समिति ने कहा है कि 30 साल से कम उम्र के लोगों को एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का ऑल्टरनेटिव दिया जाना चाहिए। दरअसल देश में दवा बनाने वाली संस्था एमएचआरए ने ये कहा है कि 18-29 साल के व्ययों को एस्ट्राजेनेका वैक्सीन न देकर इसका दूसरा विकल्प महैया बनाया जाना चाहिए।

देश में ब्ल्ड क्लॉटिंग के 79 मामले आए हैं

जानकारी के मुताबिक संस्था द्वारा जांच के दौरान पाया गया कि एस्ट्रजानेका वैक्सीन लेने के बाद यूके में कुल मिलाकर 79 मामलों में ब्ल्ड क्लॉटिंग की शिकायत की गई थी। जिसमें से 19 लोगों की मौत हो चुकी है। गौरतलब है कि क्लॉटिंग से मरने वालों में तीन की उम्र 30 साल से कम थी। इसी के बाद यूरोप के कई देशों में एस्ट्रजानेका वैक्सीन पर सवाल भी खड़े किए गए।

18 से 29 वर्ष की आयु के व्यस्को को दी जाए दूसरा वैक्सीन

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान वैक्सीनेशन और इम्यूनाइजेशन पर जेपी कमेटी के वी शेन लिम ने कहा है कि, “वेकुल जो 18 से 29 साल की उम्र के हैं और जिनकी अंडरलाइंग हेल्थलाइन है, उन्हें एलाजनेका वैक्सीन के लिए एक ऑल्टेरेनेटिव कोविड -19 वैक्सीन है। की पेशकश की जानी चाहिए, जहां इस तरह का एक वैकल्पिक उपलब्ध हो। “

वहीं निर्णय द्वारा ये भी कहा गया है कि क्लॉटिंग को लेकर पुख्ता सबूत तो नहीं मिले हैं लेकिन वैक्सीन से इसका कनेक्शन गहराता जा रहा है। इसी कारण से दूसरे टीके के इस्तेमाल की सिफारिश की जा रही है।

यूके में दो करोड़ लोगों को दी जा चुकी है एस्ट्राजेनेका वैक्सीन

वहीं प्रोग्रामिंग के मुताबिक कोरोना संक्रमण को देखते हुए वैक्सीन के कई फायदे हैं। गौरतलब है कि यूके में अब तक दो करोड़ लोगों को एस्ट्राजेनेका वैक्सीन दी जा चुकी है। इनमें से सिर्फ 79 लोगों द्वारा ही मस्तिष्क या धमनियों में क्लॉटिंग की शिकायत की गई है। इसका अर्थ यह है कि उस 2.50 लाख लोगों में से केवल एक व्यक्ति द्वारा ये शिकायत की गई है जो दुर्लभ है।

बता दें कि एस्ट्राजेका वैक्सीन का निर्माण पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा “कोविशिल्ड” के नाम से किया जा रहा है। यह उन दो वैक्सीन में से एक है जिसे इस साल जनवरी में भारत के ड्रग रेगुलेटर ने अप्रूव किया है।

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