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केंद्र पर बरसा दिल्ली हाईकोर्ट : कहा -शुतुरमुर्ग की तरह रेत में आप सिर छुपा सकते हैं, हम नहीं

by Sneha Shukla

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कोरोना परिस्थिति के दौरान में ऑक्सीजन की आपूर्ति में हीलाहवाली को लेकर हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के खिलाफ तल्ख टिप्पणियाँ की है। कोर्ट ने कहा कि शुतुरमुर्ग की तरह रेत में आप सिर छुपा सकते हैं, हम नहीं। पूरे देश में ऑक्सीजन के लिए हाहकार मचा है। अदालत ने आपूर्ति नहीं करने पर कारण नोटिस जारी कर पूछा कि कोरोना रोगियों के उपचार के लिए ऑक्सीजन देने के आदेश का पालन नहीं करने पर आपके खिलाफ क्यों न अवमानना ​​की कार्यवाही की जाए।

दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रेखा पल्ली की पीठ ने एपिसोड नाराजगी जताते हुए केंद्र सरकार को कहा, सुप्रीम कोर्ट पहले ही निर्देश दे चुका है और अब हाईकोर्ट भी कह रहा है कि चाहे जैसे भी हो, केंद्र की ओर से दिल्ली को 700। दस टन ऑक्सीजन रोजाना आपूर्ति करानी होगी।

पीठ ने कहा, आप दिल्ली का हिस्सा हैं और खुद हालात को देखते हुए हैं। तुम क्या नहीं जानते? क्या आप ‘आइवरी टॉवर’ में रहते हैं? पीठ ने केंद्र की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि मौजूदा चिकित्सा ढांचे में दिल्ली 700 मिलियन टन ऑक्सीजन की कीमत नहीं है। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल के अपने विस्तृत आदेश में दिल्ली को प्रतिदिन 700 करोड़ टन ऑक्सीजन देने का निर्देश दिया था न कि पिछले साल 10 टन था। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने हालांकि कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा निर्देश नहीं दिया था। शर्मा सुप्रीम कोर्ट के 30 अप्रैल के आदेश पर बुधवार को अपना हलफनामा करेंगे।

बस अब बहुत हो गया है …
कोर्ट ने पांच घंटे की सुनवाई में केंद्र सरकार से कहा, हमने आपसे कहा था कि अवमानना ​​हमारे दिमाग में अंतिम विकल्प है, निश्चित रूप से हमारे दिमाग में, लेकिन हम उसे अंतिम बिंदु तक नहीं ले जा सकते हैं। हम चाहते हैं कि अब काम करें। नाराज पीठ ने कहा कि अब बहुत हो गया है। अब साफ साफ बात करो। हम आपके जवाब में ना नहीं सुनना चाहते। हम अपने आदेश के अनुपालन के अलावा और कुछ नहीं सुनना चाहते हैं। आपको 700 टन टन की आपूर्ति देनी ही होगी।

दिल्ली सरकार ने पहले कम ऑक्सीजन की मांग की, क्या सिर्फ इसलिए इस शहर के लोगों को कष्ट में रहने दें। केंद्र संशोधित जरूरतों को नजरअंदाज करता रहा और लोगों को मरने के लिए छोड़ दे। ऐसा नहीं हो सकता। – हाईकोर्ट

मोहल्ला ब्रांड पर सवाल …
दिल्ली हाईकोर्ट ने मोहल्ले के उत्पादों पर भी महत्वपूर्ण सवाल उठाया है। कोरोना महामारी से लड़ने के लिए प्रोटोकॉल के इस्तेमाल के लिए पर्याप्त नहीं होने की दिल्ली सरकार की दलील पर अदालत ने सवाल उठाया है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने कहा कि अगर आपने मूलभूत ढांचा बनाया है और हम इसका इस्तेमाल महामारी में नहीं कर सकते तो फिर इसका क्या मतलब है। पीठ ने कहा कि कोरोना एक समृद्ध समाज का प्रतीक नहीं है और ये मोहल्ला क्लीनिक जाने वाले को भी हो सकता है। अदालत ने दिल्ली सरकार को इस पर रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है।

महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र से तरल तरल पदार्थ ऑक्सीजन का कोटा 200 टन टन बढ़ाने की मांग की है। राज्य ने कहा है कि जरूरतों को देखते हुए इससे कोरोना प्रबंधन में मदद मिलेगी। केंद्रीय भंडारण सचिव राजीव गाबा को लिखित पत्र में महाराष्ट्र के मुख्य सचिव सीताराम कुंते ने 10 ऑक्सीजन टैंकर भी देने की मांग की है, ताकि ऑक्सीजन के परिवहन में आसानी से हो।

हाईकोर्ट ने नेताओं द्वारा रेमडेसिवीर मंगाने और बांटने के मामलों की जांच का निर्देश दिल्ली पुलिस को दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर इन मामलों में कोई अपराध नहीं हुआ है तो एफआईआर दर्ज की जाएगी।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की खंडपीठ ने कहा कि वह अभी भी मामलों की जांच के लिए सीबीआई जांच का निर्देश नहीं देना चाहती है। हालांकि वह याची को अपनी शिकायत पुलिस आयुक्त के समक्ष रखने का निर्देश देते हैं। पुलिस आयुक्त इसकी पड़ताल कर याची को चिह्नित करेगी।

हाईकोर्ट ने कहा कि अगर इन मामलों में कोई अपराध नहीं हुआ है तो पुलिस एफआईआर दर्ज कर दो सप्ताह में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करेगी। याचिका पर अगली सुनवाई 17 मई तय की है। हाईकोर्ट ने ये निर्देश उस जनहित याचिका पर दिया है जिसमें इन मामलों में एफआईआर और सीबीआई जांच की मांग की गई थी।

याचिका में कहा गया था कि नेताओं को रेमडेसिवर मिल रहा है जबकि रोगी अस्पतालों में इसके लिए परेशान हो रहे हैं। पेश याचिका दिल फाउंडेशन के चेयरपर्सन दीपक सिंह की ओर से दायर की थी। /ची का कहना था कि नेताओं को बड़ी संख्या में रेमदेसीविर कैसे और कहां से मिल रही है जबकि उनके पास इसके लिए जरूरी अनुमति नहीं है। नेता इन दवाओं की जमाखोरी कर रहे हैं। इन मामलों की सीबीआई जांच करवाई जानी चाहिए।

विस्तार

कोरोना परिस्थिति के दौरान में ऑक्सीजन की आपूर्ति में हीलाहवाली को लेकर हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि शुतुरमुर्ग की तरह रेत में आप सिर छुपा सकते हैं, हम नहीं। पूरे देश में ऑक्सीजन के लिए हाहकार मचा है। अदालत ने आपूर्ति नहीं करने पर कारण नोटिस जारी कर पूछा कि कोरोना रोगियों के उपचार के लिए ऑक्सीजन देने के आदेश का पालन नहीं करने पर आपके खिलाफ क्यों न अवमानना ​​की कार्यवाही की जाए।

दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रेखा पल्ली की पीठ ने एपिसोड नाराजगी जताते हुए केंद्र सरकार को कहा, सुप्रीम कोर्ट पहले ही निर्देश दे चुका है और अब हाईकोर्ट भी कह रहा है कि चाहे जैसे भी हो, केंद्र की ओर से दिल्ली को 700। दस टन ऑक्सीजन रोजाना आपूर्ति करानी होगी।

पीठ ने कहा, आप दिल्ली का हिस्सा हैं और खुद हालात को देखते हुए हैं। तुम क्या नहीं जानते? क्या आप ‘आइवरी टॉवर’ में रहते हैं? पीठ ने केंद्र की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि मौजूदा चिकित्सा ढांचे में दिल्ली 700 मिलियन टन ऑक्सीजन की कीमत नहीं है। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल के अपने विस्तृत आदेश में दिल्ली को प्रतिदिन 700 मिलियन टन ऑक्सीजन देने का निर्देश दिया था और उस पर कोई प्रतिबंध नहीं था। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने हालांकि कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा निर्देश नहीं दिया था। शर्मा सुप्रीम कोर्ट के 30 अप्रैल के आदेश पर बुधवार को अपना हलफनामा करेंगे।

बस अब बहुत हो गया है …

कोर्ट ने पांच घंटे की सुनवाई में केंद्र सरकार से कहा, हमने आपसे कहा था कि अवमानना ​​हमारे दिमाग में अंतिम विकल्प है, निश्चित रूप से हमारे दिमाग में, लेकिन हम उसे अंतिम बिंदु तक नहीं ले जा सकते हैं। हम चाहते हैं कि अब काम करें। नाराज पीठ ने कहा कि अब बहुत हो गया है। अब साफ साफ बात करो। हम आपके जवाब में ना नहीं सुनना चाहते। हम अपने आदेश के अनुपालन के अलावा और कुछ नहीं सुनना चाहते हैं। आपको 700 टन टन की आपूर्ति देनी ही होगी।

दिल्ली सरकार ने पहले कम ऑक्सीजन की मांग की, क्या सिर्फ इसलिए इस शहर के लोगों को कष्ट में रहने दें। केंद्र संशोधित जरूरतों को नजरअंदाज करता रहा और लोगों को मरने के लिए छोड़ दे। ऐसा नहीं हो सकता। – हाईकोर्ट

मोहल्ला ब्रांड पर सवाल …

दिल्ली हाईकोर्ट ने मोहल्ले के उत्पादों पर भी महत्वपूर्ण सवाल उठाया है। कोरोना महामारी से लड़ने के लिए प्रोटोकॉल के इस्तेमाल के लिए पर्याप्त नहीं होने की दिल्ली सरकार की दलील पर अदालत ने सवाल उठाया है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने कहा कि अगर आपने मूलभूत ढांचा बनाया है और हम इसका इस्तेमाल महामारी में नहीं कर सकते तो फिर इसका क्या मतलब है। पीठ ने कहा कि कोरोना एक समृद्ध समाज का प्रतीक नहीं है और ये मोहल्ला क्लीनिक जाने वाले को भी हो सकता है। अदालत ने दिल्ली सरकार को इस पर रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है।


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महाराष्ट्र ने ऑक्सीजन उद्धरण 200% टन बढ़ाने की मांग की

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