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कोरोना को चारों खाने चित्त कर देगी DRDO की ‘रामबाण’ दवाई, ऑक्सीजन की कमी भी होगी दूर

by Sneha Shukla

देश में कोरोनाइरस की दूसरी लहर की वजह से मचे हाहकार के बीच शनिवार को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने कोरोना के इलाज के लिए एक दवा के इमरजेंसी यूज को मंजूरी दे दी है। इस दवा का नाम 2- डिऑक्सी-डी-ग्लूकोज (2-डीजी) नाम दिया गया है। ये दवा डीआरडीओ के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन और अलायड साइंसेज (INMAS) और हैदराबाद सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी (CCMB) ने साथ मिलकर बनाई है।

दवा को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोनावायरस के बढ़ते मामले में यह रामबहाद साबित हो सकता है। थजीआई के अनुमोदन से पहले यह दवा क्लीनिकल ट्रायल्स में सफल साबित हुई है। जिन रोगियों पर इस दवा का ट्रायल किया गया था, वे बाकी रोगियों की तुलना में जल्दी रिकवर हुए और इलाज के दौरान ऑक्सीजन पर उनकी निर्भरता कम थी।

देश में कोरोनावायरस की पहली लहर सामने आने के बाद ही डीआरडीओ इस दवा पर काम करना शुरू कर दिया था। डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने अप्रैल 2020 में जापान में इस दवा पर शोध किया था। शोध में पता चला कि यह दवा कोरोनावायरस के मरीजों के लिए मददगार साबित हो सकती है। जिसके बाद क्लोजी ने मई 2020 में दवा के दूसरे फेज के ट्रायल की मंजूरी दी।

ट्रायल के दौरान क्या सामने आया?
लॉजी से दूसरे फेज के ट्रायल की अनुमति मिलने के बाद अलग-अलग हिस्सों में कुल 11 अस्पतालों में ट्रायल किया गया। मई से अक्टूबर तक चलने वाले इस ट्रायल में 110 मरीजों को शामिल किया गया। ट्रायल के दौरान यह बात सामने आई कि जिन मरीजों को यह दवा दी गई वह बाकी मरीजों की तुलना में कोरोनावायरस से जल्दी रिकवर हो। आम मरीजों की तुलना में ट्रायल में शामिल मरीज लगभग 2.5 दिन पहले ठीक हो गए।

तीसरा फेज का ट्रायल
वहीं, तीसरे फेज का ट्रायल दिसंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच देशभर के 27 अस्पताल में किया गया। इस बार के ट्रायल में मरीजों की संख्या दोगुनी कर दी गई और दिल्ली, यूपी, गुजरात सहित कई राज्यों के मरीजों को शामिल किया गया। तीसरे फेज के ट्रायल के दौरान जिन लोगों को यह दवा दी गई उनमें से 42 प्रति रोगियों की ऑक्सीजन की निर्भरता तीसरे दिन ही खत्म हो सकती है। दूसरा जिनको यह दवा नहीं दी गई है, जिसमें 31 मरीज ऐसे हैं जिनके ऑक्सीजन पर निर्भरता खत्म हो गई है। मतलब साफ है कि दवा ने मरीज की ऑक्सीजन पर निर्भरता को कम किया है।

कैसे ली जाती है यह दवा?
यह दवा न तो एमबी के रूप में है और नहीं इंजेक्शन के रूप में। यह पाउडर के रूप में आता है। पाउडर को पानी में घोलकर लिया जाता है। दवा लेने के बाद जब यह शरीर में पहुंचता है तो कोरोनाशक कोशिकाओं में जमा हो जाता है और वायरस को बढ़ने से रोकती है। डीआरडी एंड की माने तो यह दवा कोरोना हानिकारक कोशिकाओं की पहचान करती है फिर अपना काम शुरू करती है। दवा को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि यह दवा कोरोना मरीजों के लिए रामबहाद साबित हो सकती है। खासकर ऐसे समय में जब मरीजों को ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है।

दवा का बेसिक प्रिंसिपल क्या है?
दवा बनाने वाले डीआरडीओ के वैज्ञानिक डॉ। एके मिश्रा ने एबीपी न्यूज से बात करते हुए बताया कि किसी भी वायरस की ग्रोथ होने के लिए ग्लूकोज का होना बहुत जरूरी है।) जब वायरस को ग्लूकोज नहीं मिलेगा, तो उसके मरने के चांसेज काफी बढ़ जाएंगे। इस कारण से वैज्ञानिकों ने रायपुर को ग्लूकोज का एनालॉग बनाया, जिसे 2 डीआरसी ग्लूकोज कहते हैं। ItIDS ग्लूकोज खाने की कोशिश करेगा, लेकिन यह ग्लूकोज नहीं होगा। इस कारण से उसकी तुरंत ही मृत्यु हो जाती है। वह दवा का बेसिक प्रिंसिपल है।

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