<पी शैली ="पाठ-संरेखित करें: औचित्य;"> कोरोना की दूसरी लहर का विस्फ़ोट किसी टाइम बम से कम नजर नहीं आ रहा है और विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिन और साथ ही खतरे से भरे हो सकते हैं। लेकिन इसके लिए जैसा कसूरवार केंद्र सहित राज्य की सरकारें हैं तो उसी दोष के लोगों की लापरवाही भरी बर्ताव का भी है। एक साल में किसी भी सरकार ने न तो सोचा और न ही कोई ठोस उपाय ही किए गए कि कोरोना की दूसरी लहर से आखिर कैसे निपटा जाएगा।इसी दौरान लोग भी ये सोचकर बेपरवाह हो गए थे कि जो होना था, सो हो चुके थे, अब कोरोना हमारा क्या बिगाड़ लेगा। सो, दूसरी लहर का संदेश यही है कि अगर आगे इससे भी ज्यादा डरावनी तस्वीर नहीं देखना चाहते हो, तो अभी भी संभल जाओ।
साल भर बाद भी हम कितने बदकिस्मत हैं कि जीवन बचाने के लिए अस्पतालों के बाहर लंबी कतार है, तो मरने वाले के बाद शमशान घाटों व कब्रिस्तानों का भी यही हाल है।कहीं नीत कर्फ्यू, कहीं वीकेंड क्यु और कही लॉक डाउन का नाम बदलकर ब्रेक द चेन के भरोसे इस महामारी से लड़ने की आज भी सिर्फ कोशिश कर रहे हैं। सवाल उठता है कि आख़िर ये नौबत क्यों आई और क्या एक साल में हमने कोई सबक नहीं सीखा? और अगर कुछ सीखा था, तो आख़िर उसे इतनी जल्दी क्यों भुला दिया?
पिछले लॉकडाउन के बाद से दवाओं, इंजेक्शन और ऑक्सिजन की क़िल्लत दूर करने की कोई तैयारी क्यों नहीं की गई? सरकार ने अभी तक इसका ब्योरा नहीं दिया है कि पिछले एक साल में कितने नए अस्पताल बने। और अगर कुछ बने भी तो उसमें जो वेंटिलेटर ख़रीदे गए, आईसीयू बिस्तर जोड़े गए, उनका इस एक साल में क्या हुआ? याद नहीं आता कि किसी भी राज्य सरकार ने इस एक साल में अपने शहरों में कोई नया शमशान घाट या कब्रिस्तान ही बनवाया हो, ताकि लोग & nbsp; मृतात्मा का अंतिम संस्कार तो सम्मानजनक तरीके से करना चाहिए।
मरीजों की संख्या के लिहाज से भले ही महाराष्ट्र अव्वल नंबर पर है लेकिन मेडिकल सुविधा के लिहाज से देखें, तो आज जो हाल महाराष्ट्र का है, वही हाल कमोबेश हर राज्य का है। टेस्ट न होने, आईसीयू बिस्तर, ऑक्सीजन न मिलने के लिए त्राहिमम मचा हुआ है। कोरोना से लड़ने की वैक्सीन आ जाने के बावजूद उसकी किल्लत बरकरार है और जहां उपलब्ध है, भी तो उसे लगवाने के लिए अफरातफरी का आलम है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के महाराष्ट्र चैप्टर के अध्यक्ष डॉ। अविनाश भोंडवे कहते हैं कि "सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि सभी राज्य सरकारों ने जो कुछ किया, वो वही वक़्त के लिए था। उससे सबक लेना कुछ तो लोग भूल गए और कुछ सरकार भूल गई।
सही काम करने से आगे की प्लानिंग की कमी पूरी हो गई। लोगों ने फंक्शन पहनना, हाथ धोना और सोशल डिस्टेंसिग से नाता ही तोड लिया। बॉल्डिंग भी हल्के में लेने शुरू कर दिया। नतीजा लोग अस्पताल में पहुंचने से लगे। वह भी तब जब स्थिति हाथ से निकल गई। इसका नतीजा है कि हर रोज मरीजों की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है।"
सच तो यह है कि राज्य सरकारें सबक सीखेंगी या तो मानकर उसे भूल गए या फिर वे भी यह मान चुके थे कि अब कोरोना खत्म हो चुका है और उसकी कोई और लहर नहीं आने वाली है। एक दिल्ली को छोड़ दें, तो शायद केवल किसी सरकार ने अपने स्वास्थ्य बजट में इजाफा किया हो। हर राज्य में अस्पताल के साथ ही डॉक्टर, नूर, तेजिशियन और पैरा मेडिकल स्टाफ की जबरदस्त कमी बनी हुई है, जिसकी तरफ पिछले एक साल में कोई ध्यान नहीं दिया गया।
यहाँ ग़ौर करने की बात & nbsp; यह भी है कि इस बार कोरोना का संक्रमण खत्म से फैल रहा है। कई स्थानों पर पूरा का पूरा परिवार पॉज़िटिव हो रहा है। ऐसे में कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग भी ज्यादा पड़ रहे हैं और टेस्ट भी ज्यादा हो रहे हैं। इस कारण से टेस्टिंग फैसिलिटी पर बोझ भी बढ़ रहा है।
मुंबई के जसलोक अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर व कोरोना टास्क फोर्स के सदस्य डॉ.ओम श्रीवास्तव के मुताबिक अगर कोरोना की पहली लहर के बाद हर राज्य सरकार महीने में दो बार समीक्षा बैठक करती और फॉरवर्ड प्लानिंग करती, तो आज इतने खराब हालात न होते। । वह कहता है कि "सरकारी टीकाकरण में जबरदस्त तेजी लाये और साथ ही आम लोग अब ज्यादा से ज्यादा "सेल्फ लॉकडाउन" को अपनाएं, तब तक जून की शुरुआत तक हम दूसरी लहर पर काबू पाने की उम्मीद कर सकते हैं, अन्यथा कोई भी यह नहीं कह सकता कि इस टाइम बम का असर कब खत्म होगा।"
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