बरामद नकली रेमडेसिवर इंजेक्शन
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वास्तव में देश में रेमडेसिवर इंजेक्शन के उत्पादन की कमी नहीं है। हर महीने 38 लाख से ज्यादा इंजेक्शन बनते आ रहे हैं। अब तो सरकारों ने भी इसे अपने नियंत्रण में ले लिया है लेकिन इसके बाद भी तीमारदारों को यह इंजेक्शन नहीं मिल रहा है। पड़ताल के दौरान हालात ऐसे मिले कि अस्पताल से एक पर्ची तीमारदार को यह कहकर दी जाती है कि मरीज की हालत गंभीर है, इस इंजेक्शन की जल्द से जल्द जुगाड़ कर लो।
इसके बाद तीमारदार चारों ओर धक्के खाते है और मदद मांगता है लेकिन उसे इंजेक्शन नहीं मिलता है। यह स्थिति तब है जब सरकार ने इंजेक्शन को नियंत्रण में लेते हुए नियम बनाया है कि एक अस्पताल से संबंधित जिला प्रशासन के पास रेमडेसिविर इंजेक्शन की मांग पहुंचेगी और फिर वहां से डेवलपर्स के पास एक पत्र होगा जिसके आधार पर इंजेक्शन दिया जाएगा लेकिन अस्पताल और प्रशासन किसी को अपनी जिम्मेदारी का एहसास नहीं है।
इंजेक्शन की कमी आज भी नहीं है
रेमडेसिवीर का उत्पादन प्रति माह 38 लाख हो रहा था जो इसी महीने में 45 लाख पार कर चुका है। पहले देश की आठ कंपनी जाइडस कैडिला, सिपला, हैक्ट्रो इत्यादि इंजेक्शन बना रहे थे अब 21 और कंपनियों को लाइसेंस मिल चुका है। इससे पता चलता है कि देश में इंजेक्शन उत्पादन की कमी बिलकुल भी नहीं है।
10 प्रति से अधिक मांग मतलब प्रैक्टिस गलत
नीति आयोग के सदस्य डॉ। वीके पॉल का कहना है कि रेमदेसीविर इंजेक्शन आमतौर पर दो से तीन मरीजों के ही दिए गए हैं। वर्तमान वातावरण देखें तो एक जिले में कुल सक्रिय रोगियों के 10 प्रति तक को इंजेक्शन दे सकते हैं। अगर इससे ज्यादा मांग हो रही है तो इसका मतलब उक्त जिले या राज्य में गलत प्रैक्टिस को बढ़ावा मिल रहा है।
मौत से नहीं रोका गया पाया रेमडेसिवीर
ICMR के पूर्व संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ। आर गंगाखेड़कर ने कहा कि पिछले साल अप्रैल महीने में ही कोरोनावायरस के उपचार में रेमडेसिवर को लेकर चीन ने सबसे पहले अध्ययन किया था। इससे पहले तक दक्षिण अफ्रीका में इबोला के लिए इस्तेमाल हुआ लेकिन चीन के बाद अमेरिका और अन्य देशों में अध्ययन हुआ। सभी जगह परिणाम यह आया कि इस इंजेक्शन से किसी मरीज की मौत को रोका नहीं जा सकता है।
प्राथमिक अस्पतालों में सबसे ज्यादा मांग क्यों?
दिल्ली और एनसीआर में इंजेक्शन के लिए घूम रहे ज्यादातर तीमारदारों के मरीज यहां के प्राथमिक अस्पतालों में भर्ती हैं। यहां के डॉ। आईसीयू में हाई प्रेशर पर मौजूद मरीज या फिर वेंटिलेटर पर मौजूद मरीज पर खुलेआम परीक्षण कर रहे हैं। एक ही रोगी के लिए टोसिलिजुमाब, प्लोस, रेमडेसिवर, डेक्थेथासोन, फेविपीराविर (फेवि फ्लू) जैसी सभी दवाएँ दे रहे हैं। जबकि यह उन्हें भी पता है कि ये से एक भी दवा अब तक असरदार साबित नहीं हुई है। इसकी पुष्टि एम्स के निदेशक भी कर चुके हैं।
तीर्थयात्रियों को भी होने की जरूरत है
दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ। रणदीप गुलेरिया का कहना है कि कोविड प्रोटोकॉल में रेमडेसिवर इंजेक्शन है तो और भी उसकी समान असर दवाइयां हैं। सभी का अब तक ठोस असर पता नहीं गया है लेकिन अगर हमारे पास कोई दवा उपलब्ध नहीं है तो हम उसके वैकल्पिक दवाओं को दे सकते हैं। जरूरी नहीं है कि तीमारदार रेमडेसिवर या टोसिलिजुमैत के लिए इधर उधर भैरवता होना।
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