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जयपुर गोल्डन अस्पताल में शोक-संतप्त परिजन...

ग्राउंड रिपोर्ट दिल्ली : हैलो, आपके मरीज की रात को ही मौत हो गई…

by Sneha Shukla

परीक्षित निर्भय, नई दिल्ली

द्वारा प्रकाशित: दुष्यंत शर्मा
Updated Sun, 25 Apr 2021 04:46 AM IST

जयपुर गोल्डन अस्पताल में शोक-संतप्त परिजनों …
– फोटो: अमर उजाला

ख़बर सुनकर

बीते तीन दिन की तरह सुबह विवेक सचदेवा सोकर उठे और पहला फोन उन्होंने अस्पताल में लगाया। उनका 24 वर्षीय भतीजा शिव अस्पताल के आईसीयू में जो भर्ती था। फोन पर विवेक बोले, हेल, हेल। उधर से आवाज आई, हां जी। मैं विवेक सचदेवा बोल रहा हूँ, प्रशांत विहार का निवासी। मेरे भतीजे शिव की तबीयत अब कैसी है? वह ICU में है। जवाब मिला, जी, आपका मरीज अब नहीं रहा। उसकी रात को ही मौत हो गई। यह सुन विवेक के होश ही उड़ गए। एक दिन पहले तक कि डॉ। उनसे कह रहे थे कि घबराइये मत, आपके मरीज की इम्युनिटी अच्छी है। बहुत अच्छे से रेस्पांस कर रहा है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि उनके घर का एकमात्र चिराग ही बुझ गया।

शुक्रवार को जयपुर गोल्डन अस्पताल में 21 मरीजों की ऑक्सीजन न मिलने से मौत के बाद जब अमर उजाला की टीम अस्पताल पहुंची तो हालात काफी भयावह थे। मोर्चरी के पास उन तमाम स्तूपों और लाचार परिवारों की भीड़ थी जिनके घर का सदस्य अब इस दुनिया में नहीं है। यहां कोई दो तो कोई चार घंटे से बैठकर अपने मरीज का शव लेने के इंतजार में था। मन में गुस्सा, आँखें में दर्द और जुबान पर बस यही सवाल है? अचानक से क्या हो गया है?

रोहिणी सेक्टर 24 निवासी अशोक अग्रवाल ने बताया कि उनका भाई अस्पताल में ही स्वास्थ्य कर्मचारी है। रात को फोन आया कि जल्दी से अस्पताल आओ, ऑक्सीजन खत्म हो गया है। भाभी की तबियत बिगड़ जाएगी। यह सुन वे घबरा गए। रात दो बजे आनन फानन में वह बिस्तर से उठे और अस्पताल जाने लगे। इसी बीच फोन आया, सिलेंडर क्या है? पहले से घर में दो छोटे सिलेंडर होने की वजह से अशोक अपनी कार में दौड़ पड़े लेकिन जब तक वे अस्पताल पहुंचे उनका भाई बाहर खड़ा था। उनकी भाभी अब इस दुनिया में नहीं रहीं। अस्पताल से ही जुड़े होने की वजह से उन्हें जानकारी मिल गई थी लेकिन ज्यादातर परिवारों का कहना था कि उन्हें अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म होने या कम होने की कोई जानकारी नहीं दी गई।

बवाना निवासी महेंद्र दहिया ने बताया कि उनका छोटा भाई चार दिन पहले ही भर्ती हुआ था। पिछले सप्ताह सतर्क होने के बाद वह घर पर थी लेकिन ऑक्सीजन देने के बाद भी जब सांस उखडना बंद नहीं हुई तो वह उसे लेकर वहां आ गए। उन्हें लगा कि बड़े अस्पताल में भाई बचेंगे। अब तक उन्होंने तीन लाख रुपये जमा भी कराए थे, लेकिन उनके भाई को अस्पताल में ही ऑक्सीजन न मिल सकी।

मेरी आँखों के सामने मर गए सब, मैं लाचार था
जयपुर गोल्डन अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ। डीके बलूजा से जब हमने बातचीत की तो उनकी आँखों में आंसू थे। कई सवाल सुनते रहने के बाद अचानक से बोले, मैं क्या करता हूं? व्हाट को फोन सिटनेस? कल दोपहर से ही फ़ोन लगा रहा था? मेरी आँखों के सामने मर गए सब। मैं लाचार था। मुझे मारने पर चढ़ा दो, पर मैं यही कहूंगा, मैंने उन लोगों को नहीं मारा। मैंने फोन किया, लोगों से ऑक्सीजन मांगी लेकिन मुझे किसी ने नहीं दी। मुझे अपने पेशे पर शर्मिंदगी है …।

विस्तार

बीते तीन दिन की तरह सुबह विवेक सचदेवा सोकर उठे और पहला फोन उन्होंने अस्पताल में लगाया। उनका 24 वर्षीय भतीजा शिव अस्पताल के आईसीयू में जो भर्ती था। फोन पर विवेक बोले, हेल, हेल। उधर से आवाज आई, हां जी। मैं विवेक सचदेवा बोल रहा हूँ, प्रशांत विहार का निवासी। मेरे भतीजे शिव की तबीयत अब कैसी है? वह ICU में है। जवाब मिला, जी, आपका मरीज अब नहीं रहा। उसकी रात को ही मौत हो गई। यह सुन विवेक के होश ही उड़ गए। एक दिन पहले तक कि डॉ। उनसे कह रहे थे कि घबराइये मत, आपके मरीज की इम्युनिटी अच्छी है। बहुत अच्छे से रेस्पांस कर रहा है फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उनके घर का एकमात्र चिराग ही बुझ गया।

शुक्रवार को जयपुर गोल्डन अस्पताल में 21 मरीजों की ऑक्सीजन न मिलने से मौत के बाद जब अमर उजाला की टीम अस्पताल पहुंची तो हालात काफी भयावह थे। मोर्चरी के पास उन तमाम स्तूपों और लाचार परिवारों की भीड़ थी जिनके घर का सदस्य अब इस दुनिया में नहीं है। यहां कोई दो तो कोई चार घंटे से बैठकर अपने मरीज का शव लेने के इंतजार में था। मन में गुस्सा, आँखें में दर्द और जुबान पर बस यही सवाल है? अचानक से क्या हो गया है?

रोहिणी सेक्टर 24 निवासी अशोक अग्रवाल ने बताया कि उनका भाई अस्पताल में ही स्वास्थ्य कर्मचारी है। रात को फोन आया कि जल्दी से अस्पताल आओ, ऑक्सीजन खत्म हो गया है। भाभी की तबियत बिगड़ जाएगी। यह सुन वे घबरा गए। रात दो बजे आनन फानन में वह बिस्तर से उठे और अस्पताल जाने लगे। इसी बीच फोन आया, सिलेंडर क्या है? पहले से घर में दो छोटे सिलेंडर होने की वजह से अशोक अपनी कार में दौड़ पड़े लेकिन जब तक वे अस्पताल पहुंचे उनका भाई बाहर खड़ा था। उनकी भाभी अब इस दुनिया में नहीं रहीं। अस्पताल से ही जुड़े होने की वजह से उन्हें जानकारी मिल गई थी लेकिन ज्यादातर परिवारों का कहना था कि उन्हें अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म होने या कम होने की कोई जानकारी नहीं दी गई।

बवाना निवासी महेंद्र दहिया ने बताया कि उनका छोटा भाई चार दिन पहले ही भर्ती हुआ था। पिछले सप्ताह सतर्क होने के बाद वह घर पर थी लेकिन ऑक्सीजन देने के बाद भी जब सांस उखडना बंद नहीं हुई तो वह उसे लेकर आए। उन्हें लगा कि बड़े अस्पताल में भाई बचेंगे। अब तक उन्होंने तीन लाख रुपये जमा भी कराए थे, लेकिन उनके भाई को अस्पताल में ही ऑक्सीजन न मिल सकी।

मेरी आँखों के सामने मर गए सब, मैं लाचार था

जयपुर गोल्डन अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ। डीके बलूजा से जब हमने बातचीत की तो उनकी आँखों में आंसू थे। कई सवाल सुनते रहने के बाद अचानक से बोले, मैं क्या करता हूं? व्हाट को फोन सिटनेस? कल दोपहर से ही फ़ोन लगा रहा था? मेरी आँखों के सामने मर गए सब। मैं लाचार था। मुझे मारने पर चढ़ा दो, पर मैं यही कहूंगा, मैंने उन लोगों को नहीं मारा। मैंने फोन किया, लोगों से ऑक्सीजन मांगी लेकिन मुझे किसी ने नहीं दी। मुझे अपने पेशे पर शर्मिंदगी है …।

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